Wednesday, September 15, 2010

कला और विज्ञान

कला और विज्ञान में बुनियादी अंतर यह है कि कला के द्वारा सुंदर भावनाओं को व्यक्त किया जाता है, जबकि विज्ञान एक तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति है।
कला क्या है? हम बहुत सारे कार्य करते हैं, जब हम उस काम को सुंदर और सूक्ष्म तरीके से करते हैं, तब उसे कला की परिधि में रखते हैं। जैसे गाने की कला, हंसाने की कला, लिखने की कला आदि -ये सभी कला की परिधि में आते हैं।

विज्ञान क्या है? जो विवेक पर आधारित हो, जो कारण और प्रभाव तत्व पर भी ध्यान रखता हो, वह विज्ञान कहलाता है। जब हम कोई काम तर्क के आधार पर करते हैं, तब हम उसके कारण और प्रभाव तत्व की ओर आकर्षित होते हैं।

कई सौ वर्ष पूर्व महर्षि कणाद ने कहा था, जहां कारण तत्व नहीं है, वहां प्रभाव तत्व भी नहीं हो सकता। इस दुनिया में सभी कुछ 'कारण' के दायरे के अंदर आता है, और कोई भी चीज 'अकारण' नहीं है। हम देखकर पता लगा सकते हैं कि कारण तत्व क्या है? जैसे हम चीनी देखते हैं, यहां चीनी का कारण तत्व क्या है? चीनी का कारण तत्व गन्ना है। जहां गन्ना कारण तत्व है तो चीनी वहां प्रभाव तत्व है। जब यहाँ गन्ना प्रभाव तत्व है तो बीज कारण तत्व है। इस तरह जीवन के हरेक क्षेत्र में कारण तत्व है।

अपने 'कारण और प्रभाव' तत्व के कारण आध्यात्मिक साधना का अभ्यास भी विज्ञान के ही दायरे में आता है। ज्ञान कमोबेश सभी प्राणियों में होता है, किंतु अंतर्ज्ञान का अभाव होता है। किंतु मनुष्य में ज्ञान और अंतर्ज्ञान दोनों रहता है। उसके मस्तिष्क के कुछ भागों में चेतन और कुछ भागों में अचेतन ज्ञान भरा होता है।

एक बार पार्वती ने शिव से पूछा, ज्ञान क्या है? भक्ति से इसका क्या संबंध है? क्या भक्ति के माध्यम से भी ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है? शिव ने कहा, जिसे हम वास्तविक ज्ञान कहते हैं, वह आत्म बोध है।

लेकिन यह आत्म बोध क्या है? जब मन की चेतना बाहरी जगत से निकलकर आंतरिक जगत में परिवर्तित हो जाती है, वही वास्तव में ज्ञान है। यहां बाहरी ज्ञान का कोई स्थान नहीं है। विज्ञान के छात्रों को पता है कि छाया के दो भाग हैं -छाया और प्रतिछाया। लेकिन न छाया वास्तविक ज्ञान है और न ही प्रतिछाया।

बाहरी ज्ञान क्या है? बाहरी वस्तु का आत्मस्थीकरण, वह वास्तविक ज्ञान नहीं है। छाया और प्रतिछाया की ओर देखने से वास्तविक चीज का उचित ज्ञान नहीं हो सकता। जैसे एक अमरूद और लीची का पेड़ है। दोनों पेड़ों की छाया और प्रतिछाया देखने से पता नहीं चलता है कि कौन अमरूद का पेड़ है और कौन लीची का।

पार्वती ने शिव से पूछा, समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, यह पवित्र स्थल है, वह अपवित्र स्थल है। वे लोग पूरी दुनिया में तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए घूमते हैं। तीर्थाटन का सही पथ क्या है?

शिव ने कहा, इस अभिव्यक्त सृष्टि के अंदर आत्मा के रूप में परम चैतन्य सत्ता बैठी है। इसलिए उस आत्मा यानी अपने आप को जानना ही सबसे अच्छा तीर्थाटन है। आत्मा सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। बल्कि केवल आत्मा ही तीर्थ है।

तुम सब आध्यात्मिक व्यक्ति हो, इसीलिए तुम सब को यह भी जानना चाहिए कि तुम्हारी गति सूक्ष्म से स्थूल की ओर नहीं, बल्कि स्थूल से सूक्ष्म की ओर है। तुम इस स्थूल जगत की उपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि तुम्हारे अस्तिव का भरण-पोषण इसी स्थूल जगत में हुआ है। इसलिए तुम्हें स्थूल जगत का भी उसी तरह सम्मान करना चाहिए जैसा कि सूक्ष्म जगत का करते हो।

1 comment:

Abhishek Kashyap trAinmAn said...

wah wah pandit ji.... aapka swagat hai blog ki duniya me..... and we r alws connected wid ur gr8 thoughts thru FB and ur blog.... take care... and happy VDay 2u n ur loving ones..