Wednesday, April 7, 2010
मथुरा का 1 विधायक, अगला मधु कोड़ा
''कैथड़ा'' और ''कोड़ा'' जैसे शब्दों में क्या समानता है और इन शब्दों का आपस में कोई रिश्ता है भी या नहीं, यह तो नहीं मालूम अलबत्ता इतना जरूर मालूम है कि मथुरा जैसे विश्व प्रसिध्द धार्मिक जनपद में ''कैथड़ा'' के नाम से कुख्यात एक मौजूदा विधायक अपने काले कारनामों से एक ओर जहां इस कृष्ण की पावन जन्मस्थ्ाली को कलंकित कर रहा है वहीं दूसरी ओर उस पार्टी को भी बदनाम कर रहा है जिसने उसे वो सब-कुछ दिलाया जिसकी कल्पना उसने कभी स्वप्न में भी नहीं की होगी।
खुद उसके पार्टीजन ही नहीं, क्षेत्र व जिलेभर की जनता आज यह कहते सुनी जा सकती है कि शीघ्र ही यह विधायक मथुरा जनपद और अपनी पार्टी के लिए मधु कोड़ा साबित होगा क्यों कि इसके कारनामों का चिट्ठा अब सामने आने लगा है।
कभी साइकिल और फिर दुपहिया वाहन पर चलने वाले इस शख्स के मन में पैसा कमाने की हवस क्या पैदा हुई, इसने वो सब काम करने शुरू कर दिये जिन्हें करने में जरायमपेशा लोग भी कई बार सोचते हैं।
अत्यंत सामान्य परिवार से राजनीति में कदम रखने वाले इस विधायक की करतूतों का पूरा ब्यौरा तो एक समाचार में दे पाना संभव नहीं है लेकिन फिलहाल जितना संभव है उसका उल्लेख हम यहां सिलसिलेवार कर रहे हैं।
सन् 1993 में इस विधायक ने एक कुख्यात व्यक्ित का मर्डर इसलिए करा दिया क्योंकि उसने इसे चुनाव के दौरान चंदा देने से इंकार कर दिया था जबकि पूर्व में वह इसे चंदा देता रहा था। उसने इसे चंदा देने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि वह खुद पैसे के बल पर एक राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी बन चुका था। उसकी हत्या के आरोपियों में पुलिस इसका नाम सामने नहीं लायी क्योंकि मरने वाले व्यक्ित की गिनती प्रदेश के कुख्यात सरगनाओं में होती थी। इसके अलावा तत्कालीन एसपी आलोक प्रसाद से इस विधायक के अत्यंत करीबी रिश्ते थे। उस समय मथुरा में एसएसपी नहीं, एसपी पोस्ट हुआ करती थी।
लगभग एक दशक पूर्व थाना कोतवाली वृंदावन की रिपोर्टिंग चौकी जैत क्षेत्र के ग्राम कोटा-छरौरा से उक्त विधायक ने गैर जनपद के मूल निवासी एक उद्योगपति का अपहरण इसलिए करवा दिया क्योंकि उसने इसके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से मांगी गई चौथ नहीं दी।
बाद में करीब 30 लाख रूपये की फिरौती अपने गुर्गों के माध्यम से वसूल करवा कर उसे मुक्त कराने का श्रेय भी लेने की कोशिश की। वो तो तत्कालीन एसएसपी सुनील कुमार गुप्ता ने बाद में सारा भांडा फोड़ते हुए फिरौती में वसूले गये करीब ढाई लाख रूपये इसके गुर्गों से बरामद करके यह साबित कर दिया कि उद्योगपति की रिहाई पैसे वसूलकर की गई थी वरना विधायक ने तो एक बार पुलिस को यह बताने पर बाध्य कर दिया था कि उद्योगपति को विधायक के प्रभाव और क्षेत्रीय पुलिस के दबाववश्ा छोड़ा गया।
इतना सब होने के बावजूद तब चूंकि यह विधायक, उद्योगपति के अपहरण और उससे वसूली गई फिरौती में अपना नाम आने से खुद को बचा ले गया इसलिए इसके हौसले बुलंद होते गये और यह दिन-प्रतिदिन दुस्साहसी होता गया।
आज यह अपने खिलाफ जाने वालों को खुलेआम धमकी देने से भी गुरेज नहीं करता,फिर वह व्यक्ित चाहे इसका अपना सगा भाई ही क्यों न हो। वह लोगों से कहता है कि मैं अपनी खिलाफत करने वालों को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता। ऐसे लोगों को सबक सिखाना मुझे बखूबी आता है। वह कोई भी क्यों न हो।
उद्योगपति के अपहरण और उससे मोटी रकम फिरौती में वसूलकर भी बेदाग निकलने के बाद इस विधायक ने एक से एक बड़े अपराधी को संरक्षण देना शुरू कर दिया। साथ ही उनकी कमाई में अपनी हिस्सेदारी तय कर ली।
अपने चुनाव क्षेत्र के बदनाम पूर्व प्रधान को इसके द्वारा खुलेआम संरक्षण दिये जाने और उसके एवज में उससे धन व बाहुबल प्राप्त करने की जानकारी सभी को है।
अपहरण और हत्या जैसे संगीन अपराधों में बच निकलने वाले इस विधायक ने समय के साथ बदले यहां के हालातों का तो अपने लिए जमकर राजनीतिक लाभ उठाया ही, नाजायज कमाई एवं उससे प्राप्त ताकत का भी ग्राफ ऊपर उठाया।
अनेक आर्थिक अपराधों में उक्त विधायक की संलिप्तता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इससे जुड़े कई मामले विभिन्न न्यायालयों में लम्िबत हैं लेकिन स्थानीय मीडिया उसके धनबल व बाहुबल के चलते पूरी तरह चुप्पी साधे रहता है।
यही कारण है कि आज इस विधायक को मोटा कमीशन दिये बिना न तो केन्द्र सरकार की किसी विकास योजना का क्रियान्वयन संभव है और न राज्य सरकार की किसी योजना को अमली जामा पहनाया जा सकता है।
विधायक को कमीशन दिये बिना कोई ठेकेदार अपना काम शुरू नहीं कर सकता, फिर चाहे वह कितना ही सामर्थ्यवान क्यों न हो।
हाल ही में उक्त विधायक ने जनपद में चल रही महत्वाकांक्षी योजना का कार्य तब शुरू होने दिया जब पूरा एक करोड़ रूपया कार्यदायी संस्था से हड़प लिया। यह एक करोड़ रूपया भी इस कार्य की पहली किश्त है।
इसी प्रकार एक घरेलू गैस के कारोबार के विस्तार में पहले तो अड़ंगा डलवाया और फिर अपनी बेनामी हिस्सेदारी तय होते ही सारी रूकावटें दूर करा दीं। इसके लिए उक्त विधायक ने अपने चिर-परिचित और पुराने राजनीतिक दुश्मनों से हाथ मिलाने में भी गुरेज नहीं किया।
बताया जाता है कि घरेलू गैस के कारोबारियों से विधायक ने अपनी तो बेनामी हिस्सेदारी तय की ही, अपने राजनीतिक दुश्मनों को भी 25 लाख रूपये की मोटी रकम दिलवायी।
दरअसल उनका सहयोग पाये बिना यह विधायक गैस के इस कारोबारी की बाधा दूर नहीं करा सकता था और यह बाधा दूर नहीं होती तो उसकी अपनी हिस्सेदारी भी तय नहीं होती।
विधायक की कलाकारी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने राजनीतिक दुश्मनों को गैस कारोबारियों से जितनी रकम दिलवायी लगभग उतनी ही रकम बीच में खुद खायी और इस तरह एक तीर से कई निशाने एक साथ साध लिए।
इन सबके अलावा इस विधायक ने तमाम अन्य तरीके अपनी अवैध कमाई की हवस पूरी करने के लिए ईजाद कर लिए हैं।
अपनी निधि के कार्यों के ठेके भी उक्त विधायक उसी को दिलाता है जो इसे अपने कार्यों में अप्रत्यक्ष भागीदार बनाकर रखता है।
विधायक की राजनीतिक महत्वांकाक्षा इतनी बड़ी है कि विगत लोकसभा चुनावों में उसके अपने सगे भाई ने चुनाव लड़ने की इच्छा पार्टी स्तर पर क्या जाहिर करा दी,विधायक ने उसका भी जीना हराम कर दिया। उसे अपनी कोठी से सबके सामने बेइज्जत करके यह कहते हुए बाहर कर दिया कि फिर यहां कभी कदम मत रखना।
यही हाल विधायक उन लोगों का करता है जिन्होंने कदम-कदम पर उसका साथ दिया लेकिन गलती से उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर उसके सामने शंका प्रकट कर दी। उन्होंने विधायक से यह पूछने की जुर्रत कर दी कि हमारा भी कोई भविष्य होगा या नहीं ?
विधायक ने आज उनकी हालत धोबी के कुत्तों सरीखी करके रख दी है। यह लोग सार्वजनिक तौर पर विधायक से गाली खाते देखे जा सकते हैं।
जहां तक इस विधायक के चरित्र का प्रश्न है तो उसे लेकर अक्सर उसका अपनी पत्नी के भी साथ झगड़ा होते देखा व सुना जा सकता है।
विधायक की पत्नी चूंकि एक धर्मभीरू व संस्कारी महिला हैं इसलिए उन्हें विधायक के क्रिया-कलापों पर सख्त एतराज रहता है। वह अक्सर उन्हें उनके चरित्र को लेकर आइना भी दिखाती रहती हैं लेकिन आदत से मजबूर विधायक उनकी एक नहीं सुनता।
यहां सवाल यह जरूर खड़ा होता है कि आगामी विधानसभा चुनाव जहां सभी राजनीतिक दल अपनी छवि के आधार पर लड़ना चाहते हैं और स्वच्छ छवि के लोगों को ही चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं वहां ऐसे सिटिंग विधायक अपनी पार्टी के लिए क्या गले की हड्डी नहीं बनेंगे?
क्या समय रहते पार्टी को अपने ऐसे विधायकों पर नजर रखकर उनका समुचित इलाज नहीं करना चाहिए क्योंकि जब इनके पाप का घड़ा सार्वजनिक रूप से फूटेगा तब उसकी सड़ांध प्रदेश तो क्या देशभर में फैलेगी और तब उपचार के लिए बहुत देर हो चुकी होगी।
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