आगामी विधानसभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश को टारगेट बनाकर एक लम्बे समय से शह और मात का खेल खेलती आ रही कांग्रेस अब आखिरी दांव खेलने की पूरी तैयारी कर चुकी है। इस खेल के लिए कांग्रेस द्वारा कृष्ण की जन्मस्थली को मैदान बनाया जा रहा है और इसमें उसका गुपचुप साथ दे रहे हैं राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह।
दरअसल राष्ट्रीय लोकदल का कांग्रेस में विलय किये जाने की चर्चाएं पिछले कई महीनों से राजनीतिक जगत में फैली हुई हैं, हालांकि रालोद मुखिया इस बावत चुप्पी साधे बैठे हैं। रालोद के युवराज और मथुरा के सांसद जयंत चौधरी भी ऐसे किसी प्रश्न का जवाब देने को उपलब्ध नहीं होते।
बताया जाता है कि रालोद और कांग्रेस इस नये राजनीतिक खेल की बिसात कुछ इस तरह बिछाने में लगे हैं जिससे बहुजन समाज पार्टी चारों खाने चित्त हो जाए। कांग्रेस इसके लिए जहां चौधरी अजीत सिंह को अपने मोहरे की तरह इस्तेमाल करने में लगी है वहीं राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया कांग्रेस के रथ पर सवार होकर अपनी चिर-परिचित महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहते हैं। इस बार उनकी महत्वाकांक्षा में उनके एकमात्र पुत्र व मथुरा के सांसद जयंत चौधरी भी शामिल हैं। हों भी क्यों नहीं, कांग्रेस भी तो रालोद के एक तीर से कई निशाने साधना चाह रही है। वह बसपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदखल करने की कोशिश के अलावा भाजपा को हाशिये पर रखना चाहती है। रही बात सपा की तो वह आगे चलकर यूपी की सत्ता से बसपा को दूर रखने में कांग्रेस की ही मददगार साबित होगी।
कांग्रेस की इस रणनीति के तहत रालोद मुखिया चौधरी अजीत सिंह ने बसपा के कई दिग्गज नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। रणनीति के तहत पूरी योजना को तब तक गुप्त रखना है जब तक मकसद पूरा न हो जाए। इसीलिए चौधरी अजीत सिंह व उनके पुत्र जयंत चौधरी कुछ नहीं बोल रहे। बस जो काम सौंपा है, उसे मुकाम तक पहुंचाने में लगे हैं।
राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह के अत्यंत निकटस्थ और एक धार्मिक चैनल के मालिक मुम्बई बेस्ड उद्योगपति से प्राप्त जानकारी के अनुसार कांग्रेस की मंशा को पूरा करने की शुरूआत चौधरी अजीत सिंह ने कृष्ण की नगरी से कर दी है। जाट बाहुल्य क्षेत्र मथुरा के कई प्रभावशाली बसपा नेताओं के साथ चौधरी अजीत सिंह की गोपनीय बैठकें हो चुकी हैं। ये नेता बसपा में अपने दिखावटी प्रभाव से आजिज आ चुके हैं। इन्हें समझ में नहीं आ रहा कि पार्टी आलाकमान के तल्ख रवैये से कैसे निपटा जाए। यही कारण है कि वह चौधरी अजीत सिंह से पुराने सारे गिले-शिकवे भुलाकर उनके पदचिन्हों का अनुसरण करने का मन बनाने लगे हैं।
सत्ताधारी दल के इन प्रभावशाली नेताओं का मानना है कि आगामी विधानसभा चुनावों तक उनकी पार्टी की नीतियां आमजन को उससे दूर ले जायेंगी और ऐसी स्थिति में बसपा की टिकट पर चुनाव जीतना मुश्किल होगा। ये बात अलग है कि सत्ता के मद में चूर ये नेता अपनी वर्तमान स्थिति के लिए खुद अधिक जिम्मेदार हैं।
इधर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने बहुजन समाज में भी खासी पैठ बना ली है। सर्वविदित है कि बहुजन समाज पर कुछ वर्षों पहले तक कांग्रेस का आधिपत्य हुआ करता था। ये भी कह सकते हैं जिस समाज के बल पर बसपा सुप्रीमो मायावती आज सत्ता सुख भोग रही हैं, वह मूल रूप से कांग्रेस का हिमायती रहा है इसलिए कांग्रेस को उसे अपने साथ जोड़ने में ज्यादा दिक्कतें नहीं आयेंगी बशर्ते वह ठान ले। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो दलित वर्ग को काफी हद तक आकर्षित कर भी लिया और इस कारण मायावती तिलमिला उठी थीं लेकिन जहां तक सवाल पश्िचमी उत्तर प्रदेश का है तो कांग्रेस के पास यहां ऐसा कोई तिलिस्मी नेता नहीं है जो पार्टी की नैया पार लगवा सके जबकि इस बैल्ट में पकड़ के बगैर न तो केन्द्र की राह निष्कंटक है और न प्रदेश की। कांग्रेस चूंकि इस सच्चाई से भली-भांति वाकिफ है इसलिए उसने रालोद नेता चौधरी अजीत सिंह से सशर्त सौदेबाजी की है।
गत विधानसभा चुनावों में इसीलिए भाजपा ने अजीत सिंह से पैक्ट किया था। भाजपा और रालोद दोनों को भरोसा था कि केन्द्र में भाजपा सरकार बना लेगी पर नतीजों ने सारी उम्मीद तोड़ दीं। चौधरी अजीत सिंह तो तभी कांग्रेस के पीछे हो लिये थे। हालांकि उस समय कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देने वालों की लाइन लगी हुई थी इसलिए चौधरी अजीत सिंह की दाल नहीं गली वरना उन्होंने तो चुनाव के तुरंत बाद भाजपा को ठेंगा दिखाने की तैयारी कर ली थी। मौका व दस्तूर देखते हुए अब कांग्रेस को पश्िचमी उत्तर प्रदेश में चौधरी अजीत सिंह पर दांव खेलना मुनासिब लग रहा है इसलिए उसने उन्हें आगे किया है। बेशक इसके लिए उसे केन्द्र में देर-सबेर चौधरी अजीत सिंह व जयंत चौधरी को पुरस्कृत करना पड़ेगा लेकिन कांग्रेस कई मामलों में फंसी हुई है, केन्द्र में उसके सहयोगी उसे जब-तब आंखें दिखाते रहते हैं अत: उसके लिए सौदा बुरा नहीं है।
इधर पश्िचमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में मथुरा की अहमियत का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार में किसी एक जिले से सर्वाधिक पांच मंत्री मथुरा से ही थे इसलिए मथुरा पर कांग्रेस का फोकस यूं ही नहीं है।
अब तक मांट विधानसभा क्षेत्र में अजेय रहे प्रदेश के पूर्व कबीना मंत्री श्यामसुंदर शर्मा हों या वर्तमान बसपा सरकार के कबीना मंत्री चौधरी लक्ष्मीनारायण, रालोद नेता व प्रदेश के पूर्व मंत्री ठाकुर तेजपाल सिंह हों या भारतीय जनता पार्टी के नेता व पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग, सब की अपनी-अपनी अलग हैसियत है और अलग-अलग महत्व। ऐसे में कांग्रेस का चौधरी अजीत सिंह को मोहरा बनाकर अपनी चुनावी बिसात बिछाना जो संकेत दे रहा है, वह महत्वपूर्ण है।
कांग्रेस के लिए यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पश्िचमी उत्तर प्रदेश में उसके पास पिछले काफी समय से ऐसे उम्मीदवार ही नहीं रहे जिनमें जीतने का माद्दा हो। अब वह समय रहते कद्दावर उम्मीदवारों का चयन कर लेना चाहती है। राहुल गांधी द्वारा अपने निजी दूतों से हाल ही में आगरा मण्डल का सर्वे कराया जाना इसी अभियान की एक कड़ी है जिसमें राजबब्बर भी अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
कांग्रेस या यूं कहें कि राहुल गांधी के ये प्रयास कितना रंग लायेंगे तथा अजीत सिंह कांग्रेस की इस योजना को साकार करने में कितने सफल होंगे, यह तो आगे पता लगेगा लेकिन एक बात तय है कि कांग्रेस ने बसपा तथा भाजपा में सेंध लगाने के मुकम्मल इंतजाम किये हैं और राजनीति की इस बदलती धुरी का केन्द्र मथुरा को रखा गया है क्योंकि मथुरा पश्िचमी उत्तर प्रदेश के उन जिलों में शुमार है जहां रालोद मुखिया चौधरी अजीत सिंह का खासा वर्चस्व कायम है।
कांग्रेस को अगर अपनी इस रणनीति में सफलता मिलती है तो बसपा व भाजपा के कई दिग्गज आगामी विधानसभा चुनावों में नि:संदेह कांग्रेस की ओर खड़े नजर आयेंगे और उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनकी निर्णायक भूमिका होगी।
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