Saturday, July 3, 2010

नर्म का कड़वा सच !

1833 करोड़ की योजना, करीब 150 करोड़ हजम और अब शेष 1683 करोड को डकारने की तैयारी। यह कड़वा सच है केन्‍द्र सरकार की उस महत्‍वकांक्षी योजना का जिसे जे. नर्म कहते हैं। यानि जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्‍यूअल मिशन। मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक प्रदीप माथुर ने मथुरा को इस योजना में शामिल किये जाने के बाद से लगातार दावा किया कि इस धार्मिक शहर का जे. नर्म में शामिल होना केवल और केवल उन्‍हीं के प्रयासों का नतीजा है। योजना में मथुरा को शामिल कराने का पूरा श्रेय लेने वाले विधायक प्रदीप माथुर ने तब कहा था कि उन्‍हें इसके लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ा है और इसके अमल में आने के साथ मथुरा का स्‍वरूप ऐसा हो जायेगा जिसकी जनता को कल्‍पना तक नहीं होगी। उन्‍होंने अपने दावे को मजबूत करने और श्रेय को परवान चढ़ाने के लिए प्रेस वार्ताएं कीं। अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाये, सोनिया जी से इस बावत खुद को मिली तथाकथित शाबाशी का भरपूर प्रदर्शन किया और अपनी ही पार्टी के तत्‍कालीन सांसद कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह तथा उनके गुट से खुला टकराव मोल लिया। यहां तक कि पार्टी के सार्वजनिक कार्यक्रमों में सांसद व उनके छोटे भाई कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह के साथ धक्‍का-मुक्‍की करने से पीछे नहीं हटे।
जनता ने भी मान लिया कि जे. नर्म में मथुरा को विधायक प्रदीप माथुर ने ही शामिल कराया है। नतीजतन प्रदीप माथुर को जनता ने पिछले विधानसभा चुनावों में एक बार फिर निर्वाचित करा दिया। उधर कांग्रेसी सांसद कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह इस बार चुनाव हार गये। रही-सही कसर तब पूरी हो गई जब कांग्रेस के ही नगर पालिका अध्‍यक्ष पर अनियमितताओं के आरोप लगे और इस कारण हाईकोर्ट ने उनके वित्‍तीय अधिकार सीज कर दिये। इस तरह जे. नर्म पर दावे के अनुरूप प्रदीप माथुर का पूरा आधिपत्‍य हो गया।
आज जनता अपने आप को पूरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रही है। लोगों को अहसास होने लगा है कि विधायक प्रदीप माथुर का यह कथन कितना उपयुक्‍त था कि जे. नर्म का क्रियान्‍वयन होने के बाद मथुरा का स्‍वरूप उनकी कल्‍पना से भी परे होगा।
योजना के तहत मथुरा शहर के विकास हेतु मुकर्रर कुल 1833 करोड़ रूपयों में से करीब 150 करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा है। अब तक सबसे बड़ी मद शहर का ड्रेनेज सिस्‍टम बनाने पर खर्च की गई है जिसके अंतर्गत नाला निर्माण कार्य चल रहा है। यह कार्य ''एल एण्‍ड टी'' नामक कंपनी कर रही है। कंपनी द्वारा फिलहाल कुल कार्य का एक चौथाई हिस्‍सा भी पूरा नहीं किया गया है जबकि पूरे शहर को बेतरतीब तरीके से खोद डाला गया है। नाला निर्माण के लिए अति आवश्‍यक कार्य सड़क से अतिक्रमण को हटाना जरूरी नहीं समझा गया और जहां जगह मिली, वहीं खुदाई करा दी गई। कई जगह तो अतिक्रमण हटाने से बचने के लिए पक्‍की सड़क खोदकर डाल दी गई है। जिस अंदाज में और जिस गति से नाला निर्माण का कार्य किया जा रहा है, उसे देखकर लगता है कि प्रथम तो कार्यदायी संस्‍था का उद्देश्‍य कार्य पूरा करना है ही नहीं, दूसरे अगर जैसे-तैसे काम पूरा किया जाता है तो उसके होने या ना होने में कोई फर्क नहीं होगा। पानी की निकासी और उसके बहाव का कोई इंतजाम नहीं किया जा रहा। ऐसा लगता है जैसे किसी दबाव में कार्य करने की महज औपचारिकता पूरी की जा रही है। ये बात अलग है कि कागजों तथा फाइलों पर सब-कुछ दुरूस्‍त चल रहा है जो नर्म की भारी-भरकम धनराशि को हड़पने के लिए जरूरी है।
इसी प्रकार शहर की साफ-सफाई के लिए करोड़ों रूपये खर्च करके ठेल-ढकेल से लेकर डम्‍फर तथा ट्रैक्‍टर-ट्रॉली से लेकर जेसीबी मशीनें तक खरीद ली गईं। उनकी खरीद में जिन्‍हें कमीशन खाना था, उन्‍होंने कमीशन भी खा लिया लेकिन उनका उपयोग अभी तक शुरू नहीं हुआ। कारण जानकर आश्‍चर्य होगा कि सफाई के लिए जिम्‍मेदार नगर पालिका के पास न तो ठेल-ढकेल चलाने वाले कर्मचारी हैं और न जेसीबी, डम्‍फर व ट्रैक्‍टर-ट्रॉली चलाने वाले ड्राइवर। परिणाम स्‍वरूप ये सारे कीमती उपकरण नगर पालिका के गोदाम में पड़े जंग खा रहे हैं।
यही हाल उन अधिकांश बसों का है जो इस योजना के तहत शहर की परिवहन व्‍यवस्‍था दुरूस्‍त करने के लिए भेजी गई हैं। छ: महीने से ज्‍यादा का समय बीत गया लेकिन अब तक इन बसों का रूट तय नहीं हो पाया है क्‍योंकि इसे लेकर भी मतभेद है। शहर की भौगोलिक स्‍िथति ऐसी है कि अरबन और रूरल एरिया तय कर पाना मुश्‍िकल हो है। रूरल में ये बसें चलाई नहीं जा सकतीं और शहर का आलम यह है कि वह शुरू होते ही खत्‍म हो जाता है लिहाजा बसें चल कम रही हैं, वर्कशॉप की शोभा ज्‍यादा बढ़ा रही हैं।
शहर के बद से बदतर होते हालातों को देखकर कोई भी अंदाज लगा सकता है कि किस तरह यहां केन्‍द्र सरकार की जे. नर्म जैसी महत्‍वांकाक्षी योजना को नेता, अधिकारी व ठेकेदार मिलकर पलीता लगा रहे हैं। टूटी पड़ी सड़कें, जगह-जगह होता जलभ्‍ाराव, रेलवे पुलों के नीचे बने ताल-तलैया, हर चार कदम पर लगे गंदगी के ढेर और शहरभर में बने डलावघर, यह समझने के लिए पर्याप्‍त हैं कि जे. नर्म से अब तक प्राप्‍त 150 करोड़ रूपये का बंदरबांट किया जा चुका है। जो काम होता दिख रहा है, वह कागजी घोड़े दौड़ाने तथा शेष 1683 करोड़ की मोटी रकम डकारने की भूमिका का हिस्‍सा है।
इस बात की पुष्‍टि क्षेत्रीय विधायक प्रदीप माथुर द्वारा हाल ही में दिये गये एक बयान से बखूबी होती है। प्रदीप माथुर के अनुसार जे. नर्म की शेष राशि लाने के लिए वो सोनिया गांधी, प्रंणव मुखर्जी, जयपाल रेड्डी व मोंटेक सिंह अहलूवालिया से वार्ता कर चुके हैं। प्रदीप माथुर ने बताया कि जेनर्म में चयनित शहर, जिनका विकास किन्‍हीं कारणोंवश अधूरा रह गया है, उनके लिए 'जेनर्म-2' को लाया जा रहा है और इसमें मथुरा के लिए बकाया केंद्रीय बजट करीब 1683 करोड़ को अवमुक्‍त कराने का प्राविधान है। विधायक महोदय ने यह जानकारी भी दी कि जेनर्म के यूपी कोटे में एक भी पैसा अवशेष नहीं है। उन्‍होंने जे. नर्म के क्रियान्‍वयन में हुई देरी तथा पर्याप्‍त फंड न मिल पाने का ठीकरा अपनी ही पार्टी के कुछ लोगों के सिर फोड़ा लेकिन किसी का नाम लेने से परहेज किया।
बताया जाता है कि विधायक जी की यह नीति किसी सोची-समझी योजना का हिस्‍सा है ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
जो भी हो लेकिन सबकी नजर अब जे. नर्म की उस भारी-भरकम बकाया धनराशि पर है जिससे शहर का विकास भले ही न हो पर बाकी सब की कई पीढ़ियों का बंदोबस्‍त जरूर हो जायेगा।
आश्‍चर्य की बात यह है कि हजारों करोड़ रूपयों के घपले पर कोई कुछ बोलने वाला नहीं है।
दरअसल इस शहर की फितरत ही कुछ ऐसी है। यहां तमाशबीनों का जमघट रहता है। जागरूकता का अभाव है और अधिकांश लोग निजी स्‍वार्थों की पूर्ति में लिप्‍त रहते हैं। यहां के लोगों का जीवन दर्शन है-''कोउ नृप होय हमें का हानी'' या ''जाही विधि राखे राम, ताही विधि रहिये'' ।
यही कारण है कि वह न तो वर्षों से रेलवे पुलों के नीचे हो रहे जलभराव को लेकर उद्वेलित होते हैं और न बिजली, पानी, सड़क, अपराध तथा डग्‍गेमारी को लेकर आवाज उठाते हैं। भ्रष्‍टाचार तो कोई समस्‍या रह ही नहीं गई इसलिए चाहे कोई अधिकारी अपनी तिजोरी भरता रहे या कोई नेता अपना बैंक बैलेंस बढ़ाता जाए, यहां किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
ऐसे में जे. नर्म हो या मुख्‍यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्‍ट, सब कुछ खास लोगों की अतिरक्‍त मोटी कमाई का जरिया बन जाएं तो आश्‍चर्य कैसा। आश्‍चर्य तो तब होगा जब इन योजनाओं से मिलने वाली कुल धनराशि का एक चौथाई हिस्‍सा भी मथुरा-वृंदावन के विकास पर खर्च हो जायेगा।

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