एसडीएम राजीव गुप्ता की मौत एक पहेली बनकर रह गई है। अब इस बात की संभावना भी बहुत कम ही हैं कि यह पहेली सुलझ पायेगी क्योंकि राजीव गुप्ता के परिवारीजन कुछ भी बोलने को तैयार नजर नहीं आते। यह बात अलग है कि कृष्ण की इस पावन जन्मस्थली में उनकी मौत को लेकर सवाल समय-समय पर जरूर उठेंगे क्योंकि कोई अधिकारी यूं ही अपनी जान लेने पर आमादा नहीं हो जाता, हालांकि पोस्टमॉर्टम के बाद भी उनके सिर से गोली का न मिलना खासी चर्चा का विषय बना हुआ है।
कोई उनकी खुदकुशी पर ही संदेह जता रहा है तो कोई कह रहा है कि जब गोली कामायनी हॉस्पीटल के डॉक्टर्स ने निकाल ली तो वह मिलेगी कहां से। किसी का कहना है कि पुलिस को पहले दिन से शक था इसलिए उसने एसडीएम के खिलाफ आत्महत्या की कोशिश किये जाने का अपराध पंजीकृत नहीं किया तो कोई सुसाइड नोट पर ही उंगली उठा रहा है। कोई दबी जुबान से उनकी जीवन शैली पर टीका-टिप्पणी कर रहा है तो किसी के मुताबिक वह एक धर्मभीरू सज्जन अधिकारी थे और इसीलिए उन्हें लम्बे समय तक मात्र कृष्ण जन्मभूमि की सुरक्षा ड्यूटी में लगाये रखा।
जितने मुंह, उतनी बातें लेकिन सब की सब सिर्फ कयास। सच्चाई का उनका कोई वास्ता है भी या नहीं, इसकी पुष्टि करने वाला कोई नहीं। यहां तक कि मीडिया में आयी खबरें भी कयासों पर ही आधारित रहीं।
शुरू में इस आशय की कुछ उम्मीद थी कि संभवत: एसडीएम की पत्नी या परिवार का कोई दूसरा सदस्य कुछ बोलेगा, कुछ कहेगा लेकिन अब वह उम्मीद भी नहीं रही।
राजीव गुप्ता के परिवार से ताल्लुक रखने वालों का कहना है कि श्री गुप्ता की मौत के साथ उस परिवार के सदस्यों ने पूरे मामले का पटाक्षेप मान लिया है। वह अब इस बावत न किसी से कुछ पूछना चाहते हैं और न कहना।
जो भी हो पर इसमें कोई दो राय नहीं कि कुछ ऐसा जरूर घटा जिसने रिटायरमेंट के करीब एक अधिकारी को जान लेने पर आमादा कर दिया। देखा जाए तो इसका पता लगना चाहिए। चाहे वह कारण पारवारिक हों या राजनीतिक। नितांत निजी हों या कोई अन्य उसमें सहभागी रहा हो।
बेशक श्री गुप्ता का सुसाइड नोट उनकी मौत के कारणों को कुरेदने की इजाजत नहीं देता और उसके अनुसार उन्होंने स्वेच्छा से तथा पूरे होशो-हवाश में आत्महत्या करने का कदम उठाया लेकिन जिस तरह सुसाइड नोट में की गई पोस्टमॉर्टम न कराने की प्रार्थना को कानूनी कारणों से नजरंदाज कर दिया गया, उसी तरह आत्महत्या के कारणों की गहराई में न जाने जैसी रिक्वेस्ट को भी नजरंदाज किया जा सकता है। यह जरूरी है। जरूरी इसलिए ताकि कयासबाजी पर विराम लग सके और लोगों को पता लगे कि किसी पीसीएस अधिकारी को जान लेने जैसा कठोर कदम किन परिस्िथतियों में उठाना पड़ा।
यदि उन परिस्िथतियों का सम्बन्ध किसी भी तरह उनकी कार्यप्रणाली या उनकी नौकरी से है तो उनका सामने आना न केवल प्रशासन के लिए बल्िक आम जनता के लिए भी जरूरी हो जाता है ताकि फिर कभी ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति न हो।
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