Friday, October 8, 2010

diwana se tum mat pucho

Yaad toh har koi karega jaane ke baad
sache pyar ka pata chal jaayega vaqt aane ke baad
kaun kitni mohabbat karta hai
nazar aajayega mar jaane ke baad..
`
Har kadam pe dhoke milte rahege
par fiza me phool phir bhi khilte rahege
yeh haqeeqat hai lowg aksar badal jate hai
par phir bhi anjaano se dil milte rehte hai..!!
`
yaado main kabhi aap bhi khoye hoge
khuli aankho se kabhi aap bhi soye hoge
maana hasna hai aadat gum chupaane ki
par haste haste kabhi aap bhi roye hoge..
`
labo pe geat to aankho mei khwab rakhte the..
kabhi kitabo mei hum bhi gulaab rakhte the ..
kabhi kisi ka jo hota tha intezar humei..
bada hi sham o sehar ka hisaab rakhte the…
`
Is jahan me mohabbat kash na hoti,
To safar-e-zindagi me mithas na hoti!
Agar milti BEWAFA ko sazae maut,
To diwano ki kabre yu udas na hoti!!

Wednesday, September 15, 2010

कला और विज्ञान

कला और विज्ञान में बुनियादी अंतर यह है कि कला के द्वारा सुंदर भावनाओं को व्यक्त किया जाता है, जबकि विज्ञान एक तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति है।
कला क्या है? हम बहुत सारे कार्य करते हैं, जब हम उस काम को सुंदर और सूक्ष्म तरीके से करते हैं, तब उसे कला की परिधि में रखते हैं। जैसे गाने की कला, हंसाने की कला, लिखने की कला आदि -ये सभी कला की परिधि में आते हैं।

विज्ञान क्या है? जो विवेक पर आधारित हो, जो कारण और प्रभाव तत्व पर भी ध्यान रखता हो, वह विज्ञान कहलाता है। जब हम कोई काम तर्क के आधार पर करते हैं, तब हम उसके कारण और प्रभाव तत्व की ओर आकर्षित होते हैं।

कई सौ वर्ष पूर्व महर्षि कणाद ने कहा था, जहां कारण तत्व नहीं है, वहां प्रभाव तत्व भी नहीं हो सकता। इस दुनिया में सभी कुछ 'कारण' के दायरे के अंदर आता है, और कोई भी चीज 'अकारण' नहीं है। हम देखकर पता लगा सकते हैं कि कारण तत्व क्या है? जैसे हम चीनी देखते हैं, यहां चीनी का कारण तत्व क्या है? चीनी का कारण तत्व गन्ना है। जहां गन्ना कारण तत्व है तो चीनी वहां प्रभाव तत्व है। जब यहाँ गन्ना प्रभाव तत्व है तो बीज कारण तत्व है। इस तरह जीवन के हरेक क्षेत्र में कारण तत्व है।

अपने 'कारण और प्रभाव' तत्व के कारण आध्यात्मिक साधना का अभ्यास भी विज्ञान के ही दायरे में आता है। ज्ञान कमोबेश सभी प्राणियों में होता है, किंतु अंतर्ज्ञान का अभाव होता है। किंतु मनुष्य में ज्ञान और अंतर्ज्ञान दोनों रहता है। उसके मस्तिष्क के कुछ भागों में चेतन और कुछ भागों में अचेतन ज्ञान भरा होता है।

एक बार पार्वती ने शिव से पूछा, ज्ञान क्या है? भक्ति से इसका क्या संबंध है? क्या भक्ति के माध्यम से भी ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है? शिव ने कहा, जिसे हम वास्तविक ज्ञान कहते हैं, वह आत्म बोध है।

लेकिन यह आत्म बोध क्या है? जब मन की चेतना बाहरी जगत से निकलकर आंतरिक जगत में परिवर्तित हो जाती है, वही वास्तव में ज्ञान है। यहां बाहरी ज्ञान का कोई स्थान नहीं है। विज्ञान के छात्रों को पता है कि छाया के दो भाग हैं -छाया और प्रतिछाया। लेकिन न छाया वास्तविक ज्ञान है और न ही प्रतिछाया।

बाहरी ज्ञान क्या है? बाहरी वस्तु का आत्मस्थीकरण, वह वास्तविक ज्ञान नहीं है। छाया और प्रतिछाया की ओर देखने से वास्तविक चीज का उचित ज्ञान नहीं हो सकता। जैसे एक अमरूद और लीची का पेड़ है। दोनों पेड़ों की छाया और प्रतिछाया देखने से पता नहीं चलता है कि कौन अमरूद का पेड़ है और कौन लीची का।

पार्वती ने शिव से पूछा, समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, यह पवित्र स्थल है, वह अपवित्र स्थल है। वे लोग पूरी दुनिया में तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए घूमते हैं। तीर्थाटन का सही पथ क्या है?

शिव ने कहा, इस अभिव्यक्त सृष्टि के अंदर आत्मा के रूप में परम चैतन्य सत्ता बैठी है। इसलिए उस आत्मा यानी अपने आप को जानना ही सबसे अच्छा तीर्थाटन है। आत्मा सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। बल्कि केवल आत्मा ही तीर्थ है।

तुम सब आध्यात्मिक व्यक्ति हो, इसीलिए तुम सब को यह भी जानना चाहिए कि तुम्हारी गति सूक्ष्म से स्थूल की ओर नहीं, बल्कि स्थूल से सूक्ष्म की ओर है। तुम इस स्थूल जगत की उपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि तुम्हारे अस्तिव का भरण-पोषण इसी स्थूल जगत में हुआ है। इसलिए तुम्हें स्थूल जगत का भी उसी तरह सम्मान करना चाहिए जैसा कि सूक्ष्म जगत का करते हो।

Sunday, September 5, 2010

प्रेम और सेक्स में विरोध

आप जानकर हैरान होंगे, प्रेम और काम, प्रेम और सेक्स विरोधी चीजें हैं। जितना प्रेम विकसित होता है, सेक्स क्षीण हो
जाता है। और जितना प्रेम कम होता है, उतना सेक्स ज्यादा हो जाता है। जिस आदमी में जितना ज्यादा प्रेम होगा, उतना
उसमें सेक्स विलीन हो जाएगा। अगर आप परिपूर्ण प्रेम से भर जाएंगे, आपके भीतर सेक्स जैसी कोई चीज नहीं रह जाएगी।
और अगर आपके भीतर कोई प्रेम नहीं है, तो आपके भीतर सब सेक्स है।
सेक्स की जो शक्ति है, उसका परिवर्तन, उसका उदात्तीकरण प्रेम में होता है। इसलिए अगर सेक्स से मुक्त होना है, तो
सेक्स को दबाने से कुछ भी न होगा। उसे दबाकर कोई पागल हो सकता है। और दुनिया में जितने पागल हैं, उसमें से सौ में
से नब्बे संख्या उन लोगों की है, जिन्होंने सेक्स की शक्ति को दबाने की कोशिश की है। और यह भी शायद आपको पता होगा
कि सभ्यता जितनी विकसित होती है, उतने पागल बढ़ते जाते हैं, क्योंकि सभ्यता सबसे ज्यादा दमन सेक्स का करवाती है।
सभ्यता सबसे ज्यादा दमन, सप्रेशन सेक्स का करवाती है! और इसलिए हर आदमी अपने सेक्स को दबाता है, सिकोड़ता
है। वह दबा हुआ सेक्स विक्षिप्तता पैदा करता है, अनेक बीमारियां पैदा करता है, अनेक मानसिक रोग पैदा करता है।
सेक्स को दबाने की जो भी चेष्टा है, वह पागलपन है। ढेर साधु पागल होते पाए जाते हैं। उसका कोई कारण नहीं है सिवाय
इसके कि वे सेक्स को दबाने में लगे हुए हैं। और उनको पता नहीं है, सेक्स को दबाया नहीं जाता। प्रेम के द्वार खोलें, तो
जो शक्ति सेक्स के मार्ग से बहती थी, वह प्रेम के प्रकाश में परिणत हो जाएगी। जो सेक्स की लपटें मालूम होती थीं, वे प्रेम
का प्रकाश बन जाएंगी। प्रेम को विस्तीर्ण करें। प्रेम सेक्स का क्रिएटिव उपयोग है, उसका सृजनात्मक उपयोग है। जीवन को
प्रेम से भरें।
आप कहेंगे, हम सब प्रेम करते हैं। मैं आपसे कहूं, आप शायद ही प्रेम करते हों; आप प्रेम चाहते होंगे। और इन दोनों में
जमीन-आसमान का फर्क है। प्रेम करना और प्रेम चाहना, ये बड़ी अलग बातें हैं। हममें से अधिक लोग बच्चे ही रहकर मर
जाते हैं। क्योंकि हरेक आदमी प्रेम चाहता है। प्रेम करना बड़ी अदभुत बात है। प्रेम चाहना बिलकुल बच्चों जैसी बात है।
छोटे-छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं। मां उनको प्रेम देती है। फिर वे बड़े होते हैं। वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं, परिवार उनको
प्रेम देता है। फिर वे और बड़े होते हैं। अगर वे पति हुए, तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं। अगर वे पत्नियां हुईं, तो वे
अपने पतियों से प्रेम चाहती हैं। और जो भी प्रेम चाहता है, वह दुख झेलता है। क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता, प्रेम
केवल किया जाता है। चाहने में पक्का नहीं है, मिलेगा या नहीं मिलेगा। और जिससे तुम चाह रहे हो, वह भी तुमसे
चाहेगा। तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। दोनों भिखारी मिल जाएंगे और भीख मांगेंगे। दुनिया में जितना पति-पत्नियों का संघर्ष है,
उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं और देने में कोई भी समर्थ नहीं है।
इसे थोड़ा विचार करके देखना आप अपने मन के भीतर। आपकी आकांक्षा प्रेम चाहने की है हमेशा। चाहते हैं, कोई प्रेम करे।
और जब कोई प्रेम करता है, तो अच्छा लगता है। लेकिन आपको पता नहीं है, वह दूसरा भी प्रेम करना केवल वैसे ही है
जैसे कि कोई मछलियों को मारने वाला आटा फेंकता है। आटा वह मछलियों के लिए नहीं फेंक रहा है। आटा वह मछलियों को
फांसने के लिए फेंक रहा है। वह आटा मछलियों को दे नहीं रहा है, वह मछलियों को चाहता है, इसलिए आटा फेंक रहा है।
इस दुनिया में जितने लोग प्रेम करते हुए दिखायी पड़ते हैं, वे केवल प्रेम पाना चाहने के लिए आटा फेंक रहे हैं। थोड़ी देर वे
आटा खिलाएंगे, फिर...।
और दूसरा व्यक्ति भी जो उनमें उत्सुक होगा, वह इसलिए उत्सुक होगा कि शायद इस आदमी से प्रेम मिलेगा। वह भी थोड़ा
प्रेम प्रदर्शित करेगा। थोड़ी देर बाद पता चलेगा, वे दोनों भिखमंगे हैं और भूल में थे; एक-दूसरे को बादशाह समझ रहे थे!
और थोड़ी देर बाद उनको पता चलेगा कि कोई किसी को प्रेम नहीं दे रहा है और तब संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी।
दुनिया में दाम्पत्य जीवन नर्क बना हुआ है, क्योंकि हम सब प्रेम मांगते हैं, देना कोई भी जानता नहीं है। सारे झगड़े के
पीछे बुनियादी कारण इतना ही है। और कितना ही परिवर्तन हो, किसी तरह के विवाह हों, किसी तरह की समाज व्यवस्था
बने, जब तक जो मैं कह रहा हूं अगर नहीं होगा, तो दुनिया में स्त्री और पुरुषों के संबंध अच्छे नहीं हो सकते। उनके अच्छे
होने का एक ही रास्ता है कि हम यह समझें कि प्रेम दिया जाता है, प्रेम मांगा नहीं जाता, सिर्फ दिया जाता है। जो मिलता
है, वह प्रसाद है, वह उसका मूल्य नहीं है। प्रेम दिया जाता है। जो मिलता है, वह उसका प्रसाद है, वह उसका मूल्य
नहीं है। नहीं मिलेगा, तो भी देने वाले का आनंद होगा कि उसने दिया।
अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को प्रेम देना शुरू कर दें और मांगना बंद कर दें, तो जीवन स्वर्ग बन सकता है। और जितना वे
प्रेम देंगे और मांगना बंद कर देंगे, उतना ही--अदभुत जगत की व्यवस्था है--उन्हें प्रेम मिलेगा। और उतना ही वे अदभुत
अनुभव करेंगे--जितना वे प्रेम देंगे, उतना ही सेक्स उनका विलीन होता चला जाएगा।

Wednesday, July 21, 2010

उस दिन क्या हुआ .......... यह एक रहस्य है

एसडीएम राजीव गुप्‍ता की मौत एक पहेली बनकर रह गई है। अब इस बात की संभावना भी बहुत कम ही हैं कि यह पहेली सुलझ पायेगी क्‍योंकि राजीव गुप्‍ता के परिवारीजन कुछ भी बोलने को तैयार नजर नहीं आते। यह बात अलग है कि कृष्‍ण की इस पावन जन्‍मस्‍थली में उनकी मौत को लेकर सवाल समय-समय पर जरूर उठेंगे क्‍योंकि कोई अधिकारी यूं ही अपनी जान लेने पर आमादा नहीं हो जाता, हालांकि पोस्‍टमॉर्टम के बाद भी उनके सिर से गोली का न मिलना खासी चर्चा का विषय बना हुआ है।
कोई उनकी खुदकुशी पर ही संदेह जता रहा है तो कोई कह रहा है कि जब गोली कामायनी हॉस्‍पीटल के डॉक्‍टर्स ने निकाल ली तो वह मिलेगी कहां से। किसी का कहना है कि पुलिस को पहले दिन से शक था इसलिए उसने एसडीएम के खिलाफ आत्‍महत्‍या की कोशिश किये जाने का अपराध पंजीकृत नहीं किया तो कोई सुसाइड नोट पर ही उंगली उठा रहा है। कोई दबी जुबान से उनकी जीवन शैली पर टीका-टिप्‍पणी कर रहा है तो किसी के मुताबिक वह एक धर्मभीरू सज्‍जन अधिकारी थे और इसीलिए उन्‍हें लम्‍बे समय तक मात्र कृष्‍ण जन्‍मभूमि की सुरक्षा ड्यूटी में लगाये रखा।
जितने मुंह, उतनी बातें लेकिन सब की सब सिर्फ कयास। सच्‍चाई का उनका कोई वास्‍ता है भी या नहीं, इसकी पुष्‍टि करने वाला कोई नहीं। यहां तक कि मीडिया में आयी खबरें भी कयासों पर ही आधारित रहीं।
शुरू में इस आशय की कुछ उम्‍मीद थी कि संभवत: एसडीएम की पत्‍नी या परिवार का कोई दूसरा सदस्‍य कुछ बोलेगा, कुछ कहेगा लेकिन अब वह उम्‍मीद भी नहीं रही।
राजीव गुप्‍ता के परिवार से ताल्‍लुक रखने वालों का कहना है कि श्री गुप्‍ता की मौत के साथ उस परिवार के सदस्‍यों ने पूरे मामले का पटाक्षेप मान लिया है। वह अब इस बावत न किसी से कुछ पूछना चाहते हैं और न कहना।
जो भी हो पर इसमें कोई दो राय नहीं कि कुछ ऐसा जरूर घटा जिसने रिटायरमेंट के करीब एक अधिकारी को जान लेने पर आमादा कर दिया। देखा जाए तो इसका पता लगना चाहिए। चाहे वह कारण पारवारिक हों या राजनीतिक। नितांत निजी हों या कोई अन्‍य उसमें सहभागी रहा हो।
बेशक श्री गुप्‍ता का सुसाइड नोट उनकी मौत के कारणों को कुरेदने की इजाजत नहीं देता और उसके अनुसार उन्‍होंने स्‍वेच्‍छा से तथा पूरे होशो-हवाश में आत्‍महत्‍या करने का कदम उठाया लेकिन जिस तरह सुसाइड नोट में की गई पोस्‍टमॉर्टम न कराने की प्रार्थना को कानूनी कारणों से नजरंदाज कर दिया गया, उसी तरह आत्‍महत्‍या के कारणों की गहराई में न जाने जैसी रिक्‍वेस्‍ट को भी नजरंदाज किया जा सकता है। यह जरूरी है। जरूरी इसलिए ताकि कयासबाजी पर विराम लग सके और लोगों को पता लगे कि किसी पीसीएस अधिकारी को जान लेने जैसा कठोर कदम किन परिस्‍िथतियों में उठाना पड़ा।
यदि उन परिस्‍िथतियों का सम्‍बन्‍ध किसी भी तरह उनकी कार्यप्रणाली या उनकी नौकरी से है तो उनका सामने आना न केवल प्रशासन के लिए बल्‍िक आम जनता के लिए भी जरूरी हो जाता है ताकि फिर कभी ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्‍ति न हो।

Saturday, July 17, 2010

Naja Naja chhod kar

Naja naja chhod kar ta-umr chillata raha
Aane wali zindagi meri intezar me jati rahi
Jise bhi apna samjha cheen usse liya rab ne
Bharosa phir bhi khud par rakh kar
Main jhuti umeed bandhati raha
Tham leti jo mujhe, toh bahon me apni bhar leta
Chumta mastak uska aur goad me phir lita leta
Aise ek shaks ko main baar baar bulata raha
Naja naja chhod kar ta-umr chillata raha
Mushkilein aai hazar, nahi dikha mujhe koi dwar
Tanhai ke saanaton me, gaye maine malhaar
Sabr kiya to bahut tha maine, phir umeed jati rahi
Naja naja chhod kar ta-umr chillata raha
Kar bhala, bhala hi hoga, yahi to sunte aaya tha main
Zindagi bhar gham samete, kya nahi bhalai ye
Muskurahate hi baati, zeher ka har ghunt piye
Ab to meethi lagne lagi hain aansu ki har boond bhi
Ab to koi mujhko thame, ab to koi ye kahe
Thak gaye hain honth tere kabse muskate hue
Thoda sa tu ro le ab to, aa main apni goad dun
Chain se tu soja kuch pal, sang tere main jo hun
Baith kar jiske kinare, doobta hi jaun main
Naja naja chhod kar phir nahi chillaun main

Mere dard me tera sukoon kyun hai

Mere dard me tera sukoon kyun hai,
Mere jism pe tera junoon kyun hai.
Door hai tu itna ki tujhe dekh bhi na sakun,
Phir bhi tera ehsaas char su kyun hai.
Meri muskurahate shuru hoti thi tujhse,
To phir aaj mere aasuaon ki tu wajah kyun hai.
Tere aane se pehle bhi to thi zindagi meri,
Aaj phir tujh bin suni kyun hai.
Leke tera naam to na jagte the hum,
To is raat silwaton me tera aks kyun hai

Mein ek ajeeb Shakhs hoon Khudh ko jalana chahta hoon

Mein ek ajeeb Shakhs hoon Khudh ko jalana chahta hoon,

Mein khudh ko rakh kar kahe bhool jana chahta hoon,

Meray naseeb ki khushiyan bhi kab milli mujhko,

Bas ab to umer bhar ansoo bahana chahta hoon,

Na janey kitni mohabbat hai ranj-o-gham hai mujhey,

Koi bhi dard ho dil mein chupana chahta hoon,

Baha baha ke yeh ansoo bikhar chuka hoon bohaat,

simat ke zaat mein ab muskurana chahta hoon,

Jisey aik umer se Dil mein basa kai rakha hai,

Woh raaz aaj mein sab ko batana chahta hoon,

Wohi yaad hai jo acha kaha hai logo ne,

Baqaya sarey sitam bhool jana chahta hoon,

Mujhe zamaney nai pathar samjh liya hai magar,

Mein ek insan hoon sab ko batana chahta hoon,

Jo mujhse ruth chuki hai zamaney ki khushiyan,

To mein bhi khushyon se ab ruth jana chahta hoon,

Woh meri khwahishein woh mera khuwaab woh mera bacheni,

Ishi Umer mein phir sai woh pana chahta hoon,

Koi to ho jo mujhe bhi lagaye seenay se,

Kisi ko mein bhi gham apna sunana chahta hoon

Kabhi behte hue dard mein

Kabhi behte hue dard mein,
Kabhi thehre pani sard mein,
Kabhi jheel ki gehrai mein,
Kabhi raat ki tanhai mein,
Har patthar mein,har deewar mein,
Kabhi apne hi kamre ke srinagar mein,
Tera chehra cha sa jata hai,
Aur teri yaad dilata hai,
Mujhe sab kuch bhul jata hai,
Phir dard sa jagne lagta hai,
Kuch sard sa lagne lagta hai,
Phir parchayian bolti hain mujhse,
Aur tanhayian sisakne lagti hain,
Phir dard mera gehrata hai,
Aur saanse rukne lagti hain,
Jab yaad tumhari aati hai,
Main deewana ho jata hun,
Bas waqt sarakta rehta hai,
Main beete lamhe jeeta hun,
Tum door to mujhse itne ho,
Kyun bhool tumhe nahi pata hun,
Yaadon se tumhari main,
Khud apne dil ko tadpata hun,
Phir sochta hun kabhi kabhi,
Ye yaadein hain yaad aayengi,
Na jaane kyun aur kab tak,
Mere dard ko sehlayengi,
Yun waqt ka dariya behta hai,
Ek din to wo bhi aayega,
Yeh aata jaata waqt meri,
Yaadon ko baha le jayega,
Maeri ankhon ke sapno ko,
meri mohabbat bhare ish pyare se intzar ko,

Meri jeet ko, teri haar ko,
phir Jhumunga main zindagi mein,
aur Ek din to mukt ho jaunga.


Om Murugan Namah ..
My all Respected friends , didi and Aunties Ji .
Today I am going to to introduce all of you with God Murugan. Murugan is his Tamil name Sanskrit name is Kartiksamy.

In tamil Sangam literature Murugan described as. olkappiyam, possibly the most ancient of the extant Sangam works, glorified Murugan, " the red god seated on the blue peacock, who is ever young and resplendent," as " the favoured god of the Tamils."

The Sangam poetry divided space and Tamil land into five allegorical areas (tinai) and according to the Tirumurugarruppatai( circa 400-450 A.D.) attributed to the great Sangam poet Nakkiirar, Murugan was the presiding deity the Kurinci region (hilly area). (Tirumurugaruppatai is a deeply devotional poem included in the ten idylls (Pattupattu) of the age of the third Sangam).

Tamil Sangam Literature (early centuries A.D.) mentions Murugu as a nature spirit worshipped with animal sacrifices and associated with a non-Brahmanical priest known as a Velan, a name later used to refer to the deity himself. The worship of Murugu often occurred in the woods or in an open field, with no particular associated structure. The rituals practiced included the Veriyaattu, a form of ritual-trance-dancing, which is still a common part of Murugan worship in Tamil Nadu, Kerala and Malaysia. Murugu was believed to hold power over the chaotic and could be appeased by sacrifices and Veriyaattu to bring order and prosperity.

The other Sangam era works in Tamil that refer to Murugan in detail include the Paripaatal, the Akananuru and the Purananuru.One poem in the Paripaatal describes the veneration of Murugan thus:

In Sanskrit Literature

The references to Murugan in Sanskrit literature can be traced back to the first millennium BCE. There are references to Subrahmanya in Kautilya's Arthashastra, in the works of Patanjali, in Kalidasa's epic poem the Kumarasambhavam and in the Sanskrit drama Mricchakatika. The Kushanas, who governed from what is today Peshawar, and the Yaudheyas, a republican clan in the Punjab, struck coins bearing the image of Skanda. The deity was venerated also by the Ikshvakus, an Andhra dynasty, and the Guptas.[9] The worship of Kumāra was one of the six principal sects of Hinduism at the time of Adi Shankara. The Shanmata system propagated by him included this sect. In many Shiva and Devi temples of Tamil Nadu, Subrahmaṇya is installed on the left of the main deity.

Sati, the consort of Shiva immolated herself at the Daksha Yagna, which was later destroyed by Shiva. Sati was reborn as Uma, or Parvati the daughter of the mountain king Himavaan (the Himalayas). Shiva withdrew himself from the universe and engaged himself in yogic meditation in the Himalayas.[citation needed]

In the meanwhile, the demon Surapadman ravaged the earth and tormented its beings. It was realized by the gods that only the son born of Shiva could lead the gods to victory over Tarakasuran, Surapadman and their demon companions. They plotted with Kamadeva, to shoot a flower arrow at Shiva, as he sat in meditation, so as to make him fall in love with Parvati. When Kama aimed his arrow, Shiva opened his third eye and burned Kama to ashes instantly.[citation needed]

The sparks of the fiery seed of Shiva were unbearable; even the fire God Agni could not bear them; this fire was then transported by the river Ganga into the Saravana forest into a pond called the Saravana Poigai(located at mouths of river Ganga), where the sparks became six children. They were raised by the six Krittika or Kartika - the stars that make up the Pleiades, earning the name Karthikeya. Parvati combined these six babies into one with six faces, i.e. Shanmukha or Arumugan. Since he was born in the Saravana he was also called 'Saravanabhava'. [citation needed]

Murugan became the supreme general of the demi-gods then escorted the devas and led the army of the devas to victory against the demons. The six sites at which Karthikeya sojourned while leading his armies against Surapadman are Tiruttanikai, Swamimalai, Tiruvavinankudi (Palani), Pazhamudirsolai, Tirupparamkunram and Tiruchendur. All these sites have ancient temples glorified by the Tamil poems of Tirumurugaatruppadai of the Sangam period (circa the 3rd century AD).And these six sites collectively came to be known as "Arupadai Veedu" (Lang:Tamil), it means the six battle camps of the Lord


Amar Nath ..

ॐ कार्तिक स्वामी नमः
आज मैं आप सभी को भगवन कार्तिक स्वामी के बारे मैं बताता हूँ .
संस्कृत साहित्य के अनुसार
माता सती जी बह्गावं शिव जी की भार्या थी. राजा प्रजापति दक्ष ने अपनी यज्ञ मैं शिव जी को नहीं बुलाया था.
माता सती जी ने अपने प्राणों की आहुति हवन कुण्ड मैं दे दी . शिव जी ने माता सती की मर्त्यु के बाद सन्यास ग्रहण कर लिया.
और योगी के रूप मैं तपस्या करने लगे. राक्षस ताराकसुर प्रथ्वी पर बहुत उत्पात मचा रखा था. तारकासुर को भगवन ब्रह्मा का बरदान प्राप्त था .
ताराकसुर को केवल भगवान् का पुत्र ही मार सकता था.
माता उमा (पारवती) रजा हिमालय की पुत्री थी . भागवान शिव जी और माता उमा की शादी हुई .
मुरुगन ( कार्तिक स्वामी ) भगवान शिवाजी और माता पारवती के पुत्र थे.
मुरुगन ने तारकासुर का वध करने प्रथ्वी वासियों को उसके हत्याचारों से छुटकारा दिलाया .

ॐ शं शनैश्चराय नमः
शनि देव , भगवान सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं . इस कारन उनको सौरा कहाँ जाता हैं .
शनि देव के दुसरे नाम करुराद्रिस , करुरालोचना, मन्दू, पंगु, सप्तार्ची , और असिता हैं .
शनि देव के नाम पर दिन का नाम शनिवार हैं . शनिवार के दिन मैं किसी नये काम को आरम्भ करना अशुभ मन जाता हैं .शनि गृह सौर परिवार का सबसे धीमे चलने वाला गृह हैं . यह अ... See moreपनी एक परिक्रमा दो वर्ष छः महीने मैं पूरा करता हैं .
अगर किसी की कुंडली मैं शनि का दोष हो तो शनि की पूजा करवानी चाहिए शनि दोष को दूर करने के लिए .

Om Shan Shanaishcharai Namah .

Shani or Shanichara (Saturn) is believed to be the son of Surya the Sun-god and Chhaya. So he is also called Saura. His other names include Kruradris and Kruralochana (the cruel-eyed), Mandu (dull or slow), Pangu (physically challenged), Saptarchi (seven-eyed) and Asita (dark). Shani is believed to wield evil influence, so anyone born under his influence is at risk. Hence the day named after him, Shanivara, is considered inauspicious to begin any new venture.

Saturn is the slowest planet in the solar system. As per Indian astrology, Saturn takes almost 2 years six months of time to transits from one house to another. If Saturn is malefic in one horoscope chart then Shani Puja is recommend to remove the malefic effects.

Monday, July 5, 2010

चमत्कारिक मंदिर है बालाजी मेंहदीपुर

कहावत है कि चमत्कार को नमस्कार। राजस्थान के दौसा जिले में मेंहदीपुर स्थित बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल स्वरूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से पुकारा जाता है। इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है।

बाल रूप हनुमान जी
भैरों बाबा
प्रेतराज सरकार
हरेक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर खुद को कृतार्थ मानते हैं। कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। इसका नियम इस तरह से है। सबसे पहले हलवाई से दरख्वास्त लेते हैं। यह कागज पर लिखी दरख्वास्त नहीं होती अपितु यह एक दौने में छह बूंदी के लड्डू, कुछ बताशे तथा घी का एक छोटा दीपक होता है। जिसकी कीमत ढाई रुपए होती है। यह लेकर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। वहां पुजारी को वह दौना दे देते हैं। पुजारी उस दौने में से कुछ लड्डू-बताशे जल रहे अग्नि कुंड में डालता है, ठीक उसी समय आप अपने मन में ही बालाजी से कहते हैं-बालाजी आपके दरबार में हाजिर हूं। मेरी रक्षा करते रहना। पुजारी शेष दौने को आपको वापस कर देता है। तब उसमें से दो लड्डू निकाल कर अपनी कमीज की जेब में रख लेते हैं। शेष दौने को भैरों जी के मंदिर में पुजारी को दे देते हैं। वह भी उस दौने में से कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डाल देता है। ठीक उसी समय उनसे भी मन ही मन आप कहते हैं-बाबा आपके दरबार में हाजिर हूं, मेरी रक्षा करते रहना। फिर वही दौना प्रेतराज के दरबार में पुजारी को देते हैं। वहां भी वही प्रक्रिया पुजारी व आप दौहराते हैं। यहां का पुजारी भी शेष दौना दे देता है। वहां एक चबूतरा है, जहां पर वह दौना फैंक देते हैं। मंदिर से बाहर आकर जो लड्डू हनुमान जी के भोग लगाने के बाद जेब में रखे थे, उन्हें निकाल कर खा लेते हैं। यह प्रथम चरण हुआ।

ऐसे लगाते हैं अर्जी---------------
इसकी कीमत 181 रुपए 25 पैसे होती है। इतने रुपए देकर आप हलवाई से अर्जी का सामान ले सकते हैं। हलवाई एक थाल में सवा किलो बूंदी के लड्डू तथा एक कटोरी में घी थाल में रखकर देता है। वह थाल हालाजी के मंदिर में पुजारी को देते हैं। वह कुछ लड्डू व घी भोग के लिए निकाल लेता है। कुछ लड्डू हवन कुंड में डालता है। ठीक उसी समय आपको बालाजी से जो आपकी इच्छा हो, प्रार्थना कर लेनी चाहिए। पुजारी थाल में खाली घी की कटोरी तथा छह लड्डू आपको वापस कर देता है। वह थाल आप सीधे हलवाई को दे दें। हलवाई आपको एक थाल उबले चावलों व दूसरा उबले हुए साबुत उरद का देगा। छह लड्डू में से दो उरद के थाल में रख देगा। दो लड्डू चावल के थाल में रख देगा। दो लड्डू लिफाफे में रखकर दे देगा। उसे प्रायः अपनी जेब में रख लें।
दोनों थालों को लेकर बाहर के रास्ते से भैंरों जी के मंदिर के पुजारी के समक्ष रखते हैं। पुजारी उसमें से कुछ शामग्री हवन कुंड में डलते हैं। ठीक उसी समय भैंरों जी से वही मांगें जो बालाजी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर प्रेत राज जी के मंदिर के पुजारी के सामने रखें। जब वह कुछ सामग्री हवन कुंड में डाले तो प्रेत राज जी से भी वही मांगें, जो बालाजी व भैंरों जी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर पीछे चबूतरे पर शेष सामग्री डाल देते हैं। तथा दोनों खाली थाल हलवाई को दे देते हैं। हाथ धो कर जो दो लड्डू जेब में रखे थे, उन्हें खा लेते हैं। यह लड्डू अर्जी लगाने वाला ही खाता है। िकसी और को नहीं देना चाहिए।
इसके उपरांत एक दरख्वास्त लेकर फिर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। पुजारी को देते हैं। हवन कुंड में डालते समय प्रार्थना करते हैं। (पहले वाली प्रार्थना को दोहराते हैं। )दो लड्डू दोने से निकाल कर जेब में रख लेते हैं। फिर उसी क्रम से भैंरों जी व प्रेतराज जी से मांगते हैं। दोना फेंक कर नीचे आने पर हनुमान जी के निकाले भोग के लड्डू खा लेते हैं। यहां आपकी अर्जी का क्रम पूरा हो जाता है।
मंदिर छोड़ने तथा घर वापस चलने से पहले चलते समय की एक दरख्वास्त फिर लगाते हैं। इसमें तीनों देवों से पहले बताए क्रम के अनुसार पारिवारिक सुख शांति तथा उनकी कृपा मांगते हैं। यहां बालाजी के भोग लगाने पर जो पहले दो लड्डू निकाले थे, वह नहीं निकालते हैं। फिर वहां से सीधे घर को प्रस्थान कर देते हैं, रुकते नहीं।
भूत प्रेत ग्रस्त व्यक्ति यहां उपरोक्त अनुसार अर्जी लगाता है। यहां भूत प्रेतों को संकट कहते हैं। अर्जी में बालाजी, भैरों जी व प्रेत राज जी से यही कहते हैं कि मेरे ऊपर जो संकट है, उससे मुझे मुक्त करें। तो यहां की अदृश्य शक्तियां क्रियाशील हो जाती हैं और संकट को उस व्यक्ति पर लाकर संकट को विभिन्न तरीकों से कसती हैं, वह संकट को तीन प्रकार की गति देती हैं। एक तो संकट को फांसी दी जाती है। वह संकट भैंरों जी के यहां पीड़ित के शरीर में शीर्ष आसन की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को मुक्त करने का वचन देता है। यह भी बताता है कि यह संकट किस तांत्रिक ने उसे लगाया है या वह स्वयं ही उसके पीछे कब और कहां से लगा है। उस संकट ने उस व्यक्ति का क्या-क्या अहित किया है। फिर उस संकट को फांसी दे दी जाती है। अथवा उस संकट को भंगीवाड़े में जला दिया जाता है। यदि बालाजी समझते हैं कि वह अच्छी आत्मा है तो उसे शुद्ध कर अपने चरणों में बिठा लेते हैं कि वह भजन करे और शक्ति अर्जित करे। और लोगों का अन्य संकटों से उद्धार भी करे। उस व्यक्ति की रक्षार्थ उसे अपने दूत दे देते हैं, जो उसकी रक्षा करते रहते हैं। यह सारा काम यहां स्वचालित अदृश्य शक्तियों द्वारा होता है। किसी जीवित व्यक्ति या पुजारी का कोई योगदान नहीं होता है।
यदि संकट ग्रस्त व्यक्ति यह अर्जी लगाता है कि जो भी संकट उसे परेशान कर रहा है, या कर रहे हैं, बालाजी महाराज उसे कैद कर लें तो वह संकट बालाजी महाराज के यहां कैद हो जाता है और वह उन संकटों से मुक्त हो जाता है।
यहां संकट ग्रस्तों की विभिन्न यातनाओं जैसे कलामुंडी खाते, दौड़-दौड़कर दीवारों में पीठ मारते, धरती पर हाथ मारते, भारी-भारी पत्थर अपने ऊपर रखवाते, अग्नि में तपते इत्यादि देखकर दर्शनार्थी भयभीत हो जाते हैं। किंतु भय का कोई कारण नहीं है। संकटग्रस्त व्यक्ति किसी दर्शनार्थी को कोई हानि नहीं पहुंचाता है। बालाजी महाराज के अदृश्य गण दर्शनार्थी की रक्षा में तत्पर रहते हैं। जो दर्शनार्थी अपने किसी कार्य के लिए अर्जी लगाता है, तथा यह भी बालाजी से कहता है कि मेरा काम हो जाने पर सवा मनी करूंगा तो कार्य पूरा हो जाने पर वह सवा मनी लगाता है। सवा मनी करने के लिए मंदिर के पुजारी जो श्री राम जानकी मंदिर में बैठते हैं, उन्हें सवा मनी के पैसे जमा कराने होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक, लड्डू पूड़ी, दूसरी हलुवा-पूड़ी। पुजारी उन्हें उस कीमत की रसीद दे देता है तथा बारह बजे मंदिर में प्रसाद लगाने के बाद आपको प्रसाद दिया जाता है। प्रसाद को अपने परिजनों व साथियों के लिए मंदिर से धर्मशाला में ले जाकर सेवन करना चाहिए। इस मंदिर में एक विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि मंदिर में लगाया गया भोग प्रसाद न कोई किसी को देता है और न ही कोई दूसरा खाता है। इस मंदिर में लगाया प्रसाद अपने घर भी नहीं ले जाया जाता। केवल मेवा मिश्री का भोग ही ले जा सकते हैं। यहां करीब तीन सौ धर्मशाला हैं और भोजन की अच्छी व्यवस्था है।

शादी से पहले कैसे मिलाएं गुण

लव मैरिज करने वाले भी जन्म कुंडली मिलाने पर जोर दे रहे हैं, यह न केवल उनके लिए शुभ बात है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी शुभ सोच है। इन दिनों फैमिली पंडित डॉट कॉम पर प्रेमी युगल कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहे हैं। उनके द्वारा गुण मेलापक के बारे में जानने के लिए सैकड़ों की संख्या में मेल की गयी हैं।
अतः लोगों को यह बताना जरूरी हो गया है कि किस तरह गुण मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष होने के बावजूद किस प्रकार उक्त दोष उन कुंडलियों पर लागू नहीं होता।
नाड़ी दोष का दुष्प्रभाव वर एव कन्या की प्रजनन शक्ति, स्वास्थ्य तथा आय़ु पर सीधा-सीधा पड़ता है। वर-वधु के समान जीन्स होने पर संतति पर स्पष्ट रूप से दुष्प्रभाव परिलक्षित माना जाता है। सामान्यतः गुणमेलापक चार्ट में विद्यमान नाड़ी दोष किन स्थितियों में अपना दुषप्रभाव नहीं छोड़ता, उन्हीं स्थितियों के बारे में ही यहां बताया जा रहा है।
योनि, गण एवं भकूट दोष का संतुलन ग्रह मैत्री होने से बना रहता है। चंद्र राशि के अधिपति (वर-वधु) जिस नवांश में हों, उन नवांश के अधिपति यदि आपस में मित्र हैं तो नाड़ी दोष शांत हो जाता है।
समान नक्षत्र होने से मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष अंकित रहता है, परंतु ऐसा होने पर विभिन्न नक्षत्र चरणों में होने से तथा पद बाधा नहीं होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। पद एक-तीन, दो-चार होने चाहिए। राशि एक होने पर तथा नक्षत्र अलग-अलग होने से नाड़ी दोष नहीं लगता।
राशि अलग होने से एवं नक्षत्र एक ही होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। दोनों की चंद्र राशि का अधिपति एक होने से भी दोष का दुष्प्रभाव नहीं होता। राशि अलग-अलग हो, किंतु राशि स्वामी एक ही हो, तब भी दोष नहीं माना जाता।
गुण मेलापक कुंडली में नाड़ी दोष होने पर यदि राशि स्वामी शुभ ग्रह हो, जैसे गुरु, शुक्र, अंशानुसार चंद् और बुध हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता। इसी प्रकार नाड़ी दोष उदासीन होने से अन्य दोष भी उदासीन हो जाते हैं।
गुण मेलापक पद्वति में जिन बातों का वर्णन है, वह आठ प्रकार की होती हैं तथा एक से आठ तक की संख्या के योग पर ऋषियों द्वारा 36 गुण निर्धारित किए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र सूचनापरक पद्वति के आधाऱ पर पूर्व सूचना का आभास कराता है। विवाह के पहले वर-कन्या की जन्म कुंडली मिलान का आशय केवल परंपरा का निर्वाह नहीं है,यह भावी दंपत्ति के स्वभाव, गुण,प्यार तथा आचार व्यवहार के सबंध में ज्ञात कराने में सहायक होता है। जब तक समान आचार-विचार वाले वर-कन्या नहीं मिलते,तब तक मैरिज लाइफ सुखी नही हो सकती। जन्मपत्री में मेलापक पद्वति वर-कन्या के स्वभाव, रूप और गुणों को अभिव्यक्त करती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पद्वति विशुद्ध विज्ञान पर आधारित है।

शादी से पहले कैसे मिलाएं गुण

लव मैरिज करने वाले भी जन्म कुंडली मिलाने पर जोर दे रहे हैं, यह न केवल उनके लिए शुभ बात है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी शुभ सोच है। इन दिनों फैमिली पंडित डॉट कॉम पर प्रेमी युगल कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहे हैं। उनके द्वारा गुण मेलापक के बारे में जानने के लिए सैकड़ों की संख्या में मेल की गयी हैं।
अतः लोगों को यह बताना जरूरी हो गया है कि किस तरह गुण मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष होने के बावजूद किस प्रकार उक्त दोष उन कुंडलियों पर लागू नहीं होता।
नाड़ी दोष का दुष्प्रभाव वर एव कन्या की प्रजनन शक्ति, स्वास्थ्य तथा आय़ु पर सीधा-सीधा पड़ता है। वर-वधु के समान जीन्स होने पर संतति पर स्पष्ट रूप से दुष्प्रभाव परिलक्षित माना जाता है। सामान्यतः गुणमेलापक चार्ट में विद्यमान नाड़ी दोष किन स्थितियों में अपना दुषप्रभाव नहीं छोड़ता, उन्हीं स्थितियों के बारे में ही यहां बताया जा रहा है।
योनि, गण एवं भकूट दोष का संतुलन ग्रह मैत्री होने से बना रहता है। चंद्र राशि के अधिपति (वर-वधु) जिस नवांश में हों, उन नवांश के अधिपति यदि आपस में मित्र हैं तो नाड़ी दोष शांत हो जाता है।
समान नक्षत्र होने से मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष अंकित रहता है, परंतु ऐसा होने पर विभिन्न नक्षत्र चरणों में होने से तथा पद बाधा नहीं होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। पद एक-तीन, दो-चार होने चाहिए। राशि एक होने पर तथा नक्षत्र अलग-अलग होने से नाड़ी दोष नहीं लगता।
राशि अलग होने से एवं नक्षत्र एक ही होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। दोनों की चंद्र राशि का अधिपति एक होने से भी दोष का दुष्प्रभाव नहीं होता। राशि अलग-अलग हो, किंतु राशि स्वामी एक ही हो, तब भी दोष नहीं माना जाता।
गुण मेलापक कुंडली में नाड़ी दोष होने पर यदि राशि स्वामी शुभ ग्रह हो, जैसे गुरु, शुक्र, अंशानुसार चंद् और बुध हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता। इसी प्रकार नाड़ी दोष उदासीन होने से अन्य दोष भी उदासीन हो जाते हैं।
गुण मेलापक पद्वति में जिन बातों का वर्णन है, वह आठ प्रकार की होती हैं तथा एक से आठ तक की संख्या के योग पर ऋषियों द्वारा 36 गुण निर्धारित किए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र सूचनापरक पद्वति के आधाऱ पर पूर्व सूचना का आभास कराता है। विवाह के पहले वर-कन्या की जन्म कुंडली मिलान का आशय केवल परंपरा का निर्वाह नहीं है,यह भावी दंपत्ति के स्वभाव, गुण,प्यार तथा आचार व्यवहार के सबंध में ज्ञात कराने में सहायक होता है। जब तक समान आचार-विचार वाले वर-कन्या नहीं मिलते,तब तक मैरिज लाइफ सुखी नही हो सकती। जन्मपत्री में मेलापक पद्वति वर-कन्या के स्वभाव, रूप और गुणों को अभिव्यक्त करती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पद्वति विशुद्ध विज्ञान पर आधारित है।

जन्म समय नहीं है तो पता करें

कृष्णामूर्ति ने शासक ग्रहों एवं उसकी उपयोगिता का अन्वेषण करके फलित ज्योतिष को पूर्णता की ओर अग्रसर कर दिया है। यह अभूतपूर्व खोज है, जो किसी भी जातक का एक्यूरेट जन्म समय न होने पर उसकी जानकारी देने में सक्षम है। इसमें सबसे पहले शासक ग्रह निकालें। उनमें जो भी सबसे बली हो या चंद्र नक्षत्र या राशि में जो बली हो, वही प्रश्न कर्ता की लग्न होती है। यदि व्यक्ति को जन्म का लगभग समय मालूम है तो उस संभावित समय की लग्न देखें,जिसका स्वामी चंद्र नक्षत्र का स्वामी हो, वही जन्म की लग्न होती है। या उस समय के शासक ग्रहों में सबसे बली जो ग्रह हो, वह उन संभावित लग्नों में स्वामी बनता हो तो वही जन्म लग्न होती है। जन्म के समय लग्न कितने अंशों पर थी, इसका पता शासक ग्रहों से लगाया जा सकता है। नीचे दिए जा रहे उदाहरण से इस सूत्र को आसानी से समझा जा सकता है।
29 मई 1996 को एक महिला अपनी शादी के बारे में पूछने के लिए आई। उसने अपनी जन्म तारीख 15 अक्टूबर 1959 बताई तथा अपने जन्म समय के बारे में अनभिज्ञता जतायी। जन्म स्थान 21 अंश 10 कला उत्तर तथा देशान्तर 79 अंश 12 कला पूर्व था। इस पर मैंने तात्कालिक शासक ग्रह देखे, जो इस तरह थे-

प्रश्न दिनांक-29 मई 1996
प्रश्न समय-15.25
प्रश्न स्थान-अक्षांश 20.38 उत्तर
रेखांश 78.33 पूर्व

प्रश्न समय के शासक ग्रह इस तरह से थे-

लग्न-कन्या 29 अंश 8 कला 25 विकला पर थी, लग्नेश बुध तथा लग्न नक्षत्रेश मंगल हुआ।
चंद्र की स्थिति-कन्या राशि में 29 अंश 13 कला 16 विकला पर चंद्र स्थित था, अतः चंद्र लग्नेश बुध और चंद्र नक्षत्रेश मंगल हुआ।

वार स्वामी-बुध

जन्म समय निर्धारित करने के लिए चंद्र नक्षत्र को देखना चाहिए। 15 10-1959 को चंद्र रात्रि 12.15 एएम बजे मीन राशि में छह अंश पर शनि के नक्षत्र में था। शनि शासक ग्रहों में नहीं है। अगला नक्षत्र रेवती है, जिसका स्वामी बुध है, जो एक शक्तिशाली ग्रह है, अतः यह उसका जन्म नक्षत्र होना चाहिए। रेवती नक्षत्र रात्रि के 9 बजे से आरंभ होता है।
वृष लग्न रात्रि के 9 बजकर 33 मिनट तक है। किंतु इसका स्वामी शुक्र शासक ग्रह नहीं है। इसके बाद मिथुन लग्न उदय हो रही है, जिसका स्वामी बुध शासक ग्रहों में शक्तिशाली है। मिथुन लग्न में तीन नक्षत्र आएंगे, मिथुन लग्न में आने वाले तीनों नक्षत्रों के स्वामी गुरु, राहु व मंगल हैं। गुरु शासक ग्रहों में नहीं है, अतः गुरु के नक्षत्र में जन्म नहीं हुआ। राहु बुध का द्योतक है। लेकिन शासक ग्रहों में सीधा संबंध नहीं है। मंगल शासक ग्रहों में है, अतः मंगल के नक्षत्र में राहु के उप नक्षत्र में इनका जन्म हुआ। यह मिथुन लग्न में 1 अंश 4 कला 17 विकला पर आता है। यह लग्न रात्रि को 9.36 बजे उदय हो रही है। इस समय के आधार पर मैंने उस महिला की कुंडली बनायी और उसकी सत्यता की परीक्षा के लिए उसके जीवन की बीती घटनाएं बतायीं।

सूत्रों को प्रायोगिक रूप से समझाने के लिए संक्षिप्त कुंडली विश्लेषण प्रस्तुत है-

जन्म विवरण
जन्म तिथि-15.10.1959
समय-21.36 बजे
स्थान-21.10, 79.12

मिथुन लग्न की कुंडली में शुक्र तृतीय में, सूर्य-राहु चतुर्थ में, मंगल-बुध पंचम में, गुरु षष्ठम में, शनि सप्तम में, केतु-चंद्र दशम भाव में बैठे हैं।
निरयन भाव चलित कुंडली में लग्न मिथुन, तृतीय में शुक्र, चतुर्थ में राहु, पंचम में बुध-सूर्य-मंगल, षष्ठ में गुरु, सप्तम में शनि तथा दशम भाव में चंद्र-केतु थे।

उसका व्यक्तित्व
-------------
लग्न का उप नक्षत्र राहु है, जो मंगल के नक्षत्र में है। राहु कन्या राशि में होने के कारण वह देखने में सुंदर व तेजतर्रार है। दूसरे भाव का उप नक्षत्र बुध है, अतः वह अधिक बोलने वाली और मृदुभाषी है।

शिक्षा
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चौथे भाव का उप नक्षत्र राहु है, वह चौथे औऱ पांचवे भाव का नक्षत्रीय स्तर पर कारक है। उप नक्षत्र स्तर पर 3 व 6 भाव का कारक है। इसलिए उच्च शिक्षा पाने में असमर्थ रही है। उपनक्षत्र का 3 व 5 भाव का कारक होने के कारण शिक्षा में बाधा आयी और शिक्षा हाईस्कूल के बाद बंद हो गयी।

विवाह
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सातवे भाव का उप नक्षत्र शुक्र है और वह अपने ही नक्षत्र में है, अतः उसका पति देखने में सुंदर होगा। शुक्र तीसरे भाव का कारक है, अतः उसकी ससुराल पड़ौस में होगी। शुक्र नक्षत्रीय और उप नक्षत्रीय स्तर पर 3,4 व 6 भाव का कारक होने से वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण नहीं होगा। क्योंकि सप्तम भाव का कारक शुक्र 2,5,11 भाव का कारक नहीं है। अतः पारिवारिक जीवन मध्य, सुखद और स्थाई नहीं है। सातवे भाव का उप नक्षत्र अपने ही नक्षत्र में तथा अग्नि तत्व राशि में होने से उस महिला में अत्यधिक सैक्स भावना है। दशा नाथ शुक्र के 3,4,6 भाव के कारक होने के कारण शादी नरक तुल्य हो गयी और तलाक में बदल गयी।

प्रेम संबंध
-------
पांचवे भाव का उपनक्षत्र सूर्य है, जो मंगल के नक्षत्र में है तथा शनि के उप नक्षत्र में है। मंगल ने इस विषय में हिम्मत दी औऱ शनि क्योंकि कोई कानून नहीं मानता, अतः प्रेम संबंधों में वह दुस्साहसी और निडर है। शनि द्विस्वभाव राशि में होने के कारण उसने कई प्रेमियों के साथ खुलकर आनंद लिया।

दूसरा विवाह
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सप्तम भाव का उप नक्षत्र न तो बुध है और न ही द्विस्वभाव राशियों से संबंधित है। दशा का स्वामी भी बुध या द्विस्वभाव राशियों से संबंधित नहीं है तथा दूसरे भाव का उप नक्षत्र सप्तम भाव से भी संबंधित नहीं है, अतः दूसरी शादी नहीं होगी।
अंत में उसने स्वीकार किया कि उसने अपना समय जानबूझकर नहीं बताया था, क्योंकि उसे गोपनीय बातों के खुल जाने का डर था। अंततः वह बुझे मन से धन्यवाद देकर चली गयी।

Saturday, July 3, 2010

कराची में भारत की धरोहर

पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी कराची के बीचों-बीच एक इमारत पर नज़रें एकाएक ठहर जाती हैं क्योंकि वहाँ दिखाई देता है - भारत का झंडा.
ये झंडा दिखाई देता है रतन तलाव स्कूल की इमारत पर, जिसे देख कुछ पलों केलिए लगता है मानो आप भारत में हैं जहाँ किसी राष्ट्रभक्त ने अपने घर पर तिरंगा बनवा लिया है.
रतन तलाव स्कूल के मुख्य द्वार पर सीमेंट से भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना हुआ है जिसे ना धूप-बारिश-धूल मिटा पाई है ना बँटवारे का भूचाल.
तिरंगे के साथ हिंदी में दो शब्द भी लिखे दिखाई देते हैं - स्वराज भवन.
ये स्कूल एक सरकारी स्कूल है और वहाँ के बुज़ुर्ग अध्यापक ग़ुलाम रसूल बताते हैं कि इस सरकारी स्कूल में दो पारियों में कक्षाएँ चलती हैं जिनमें कम-से-कम सौ बच्चे पढ़ते हैं.
अतीत
स्कूल की इमारत पर लगी पट्टी
स्कूल में गंदी हो चुकी एक पट्टी पर दिखता है बाबू राजेंद्र प्रसाद का नाम
ग़ुलाम रसूल बताते हैं कि इस स्कूल के अतीत के बारे में उन्हें पूरी जानकारी नहीं है सिवा इस बात के कि इसका निर्माण 1937 में हुआ था और तब वो इस इलाक़े का एकमात्र स्कूल था.
वे बताते हैं कि स्कूल के पुराने काग़ज़ात भी मौजूद नहीं हैं.
स्कूल के एक और अध्यापक असलम राजपूत बताते हैं कि उन्होंने लोगों से सुना है कि स्कूल के दरवाज़े के पास स्कूल के उदघाटन के समय का पत्थर था जो अब दब गया है.
वहाँ दीवार पर लगी मिट्टी को कुरेदने पर दो तख़्तियाँ नज़र आईं जिन्हें साफ़ करने पर हिंदी में लिखावट मिलती है जिनसे पता चलता है कि इस भवन की आधारशिला बाबू राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी और स्कूल का उदघाटन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया.
इन पत्थरों की हालत देखकर ऐसा लगता है मानो इंसान तो नफ़रत के शिकार हुए ही हैं, भाषा और इमारतें भी इस नफ़रत से नहीं बच सकी हैं.
धरोहर
स्कूल पर लगी पट्टी
स्कूल में एक और पत्थर पर लिखा है पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम
सिंधी और उर्दू के जाने-माने लेखक अमर जलील ने अपनी एक किताब में इस स्कूल का ज़िक्र किया है.
अमर जलील लिखते हैं - "1947 की एक शाम को ख़बर मिली कि रतन तलाव स्कूल को आग लगा दी गई है. मैं दौड़ता हुआ स्कूल के सामने पहुँचा तो स्कूल से धुआँ उठ रहा था.
"यह दृश्य देख कर मैं परेशान हो गया. रतन तलाव से निकले आग के शोले मेरे वजूद में बुझ नहीं सके हैं."
इस स्कूल के पास और भी कुछ ऐसी इमारतें हैं जो उस दौर में मंदिर या धर्मशाला हुआ करती थीं. लेकिन अब मंदिर इमामबाड़े में और धर्मशाला गाड़ियों के गैरेज में बदल चुके हैं.
लेकिन इन बदलावों के बीच भी एक तिरंगा झंडा आज भी एक इतिहास का एहसास दिलाता है. ये तिरंगा दोनों देशों के उस साझा इतिहास की धरोहर है.

गंगा-यमुना का अस्‍ितत्‍व खतरे में

देवभूमि से निकलने वाली गंगा-यमुना का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। ओखला में यमुना के जल का प्रदूषण स्तर 40 मिलीग्राम प्रति लीटर बीओडी होने से संक्रामक बीमारियों के फैलने के पूरे आसार बन गए हैं। यूपी पलूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन अनिल कुमार मिश्र ने बताया कि उत्तराखंड-हरियाणा होकर दिल्ली आने वाली यमुना का जल ओखला पार करने के बाद ही प्रदूषित हो जाता है। मथुरा-आगरा होते हुए यमुना जब इलाहाबाद के संगम तट पर गंगा से मिलती है, उस समय तक यमुना का पानी काफी जहरीला हो चुका होता है।
यूपी पलूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन ने बताया कि अब गंगा-यमुना समेत अन्य नदियों के किनारे प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की सूची बनवाई जा रही है। अगर दिल्ली और हरियाणा के तमाम उद्योगों में एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगाया गया होता तो इस तरह की खतरनाक स्थिति से दिल्ली के आसपास रहने वाले लोगों को न गुजरना पड़ता। अब भी दर्जनों इंडस्ट्रूीज में एसटीपी नहीं लगाया गया है। गंगा का पानी गंग नहर से दिल्ली में जरूर आ रहा है, मगर यह प्रदूषित है।
उन्होंने बताया कि दिल्ली वासियों के साथ ही गाजियाबाद-नोएडा में भी गंगा-यमुना के प्रदूषित पानी से बीमारियां फैल सकती हैं। हाई कोर्ट ने इस खतरनाक स्थिति से चिंतित होकर ही गंगा के किनारे पॉलिथीन फेंकने पर प्रतिबंध लगाया है। कोर्ट के आदेश के चलते ही दिल्ली में हरियाणा होकर आने वाली यमुना के एक तरफ निर्माण कार्य पर रोक लगाई गई है।
चेयरमैन ने बताया कि गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, आगरा, बागपत, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, सहारनपुर, मेरठ जैसे जिलों के कमिश्नर और डीएम को प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी ही होगी। तभी दिल्ली-मथुरा होकर इलाहाबाद जाने वाली यमुना और कन्नौज-कानपुर होकर इलाहाबाद पहुंचने वाली गंगा अपने पुराना रूप हासिल कर सकेगी।

मथुरा में कांग्रेस लोकसभा चुनाव क्‍यों हारी

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी इन दिनों उत्‍तर प्रदेश में पार्टी को न केवल पुनर्जीवित करने की कोशिश में हैं बल्‍िक चाहते हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान उनके प्रत्‍याशियों का प्रदर्शन सारी राजनीतिक गणित को पलटते हुए सबको चौंका दे और कांग्रेस अपनी पुरानी गरिमा हासिल करे। इसके लिए उन्‍होंने बाकायदा प्‍लानिंग की है और इस प्‍लानिंग को मिशन 2012 नाम दिया है। मण्‍डल वाइज वह अपने निजी गुप्‍तचरों से सर्वे करा रहे हैं। आगरा मण्‍डल पर उनकी विशेष नजर है क्‍यों कि राजनीति के क्षेत्र में यहां से मिली जीत या हार का एक अलग महत्‍व होता है। यह महत्‍व तब और बढ़ जाता है जब बसपा सुप्रीमो व प्रदेश की मुख्‍यमंत्री मायावती ने काफी पहले से यहां अपना ध्‍यान केन्‍द्रित कर रखा हो। यहां के विकास में वह विशेष रूचि ले रही हों।
कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी ने इस महत्‍व को समझते हुए हाल ही में आगरा मण्‍डल का सर्वे अपने गुप्‍तचरों से कराया है।
यूं तो इस सर्वे का मकसद ही जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को तरजीह देना, निष्‍क्रिय कार्यकर्ताओं की पहचान करना, अब तक मलाई मारते आ रहे घाघ नेताओं की कारगुजारियों व जनता में उनकी वर्तमान छवि का पता लगाना तथा पार्टी के लिए समर्पित लेकिन घाघ कांग्रेसियों की राजनीति के शिकार युवा नेताओं को आगे लाना है लेकिन इसका एक और मकसद भी है और वह मकसद है उन कारणों एवं उन लोगों को जानना जिनके कारण कांग्रेस का अंदरूनी कलह दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया। राहुल गांधी इस सर्वे के माध्‍यम से यह पता करना चाहते हैं कि गत लोकसभा चुनावों में पार्टी को अपनी वो सीटें क्‍यों गंवानी पड़ी जिन पर कांग्रेस काबिज थी। ऐसी सीटों में से एक सीट इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा की भी थी और यहां से सांसद थे कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह।
कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह एक स्‍वच्‍छ छवि वाले सभ्‍य कांग्रेसी नेता हैं और इससे पहले लोकसभा में मथुरा का तीन बार प्रतिनिधित्‍व कर चुके थे। मथुरा में कांग्रेस का परचम उन्‍होंने तब लहराया जब यूपी के अंदर कांग्रेस मृत प्राय: पड़ी थी। उत्‍तर प्रदेश में मथुरा वो जिला था जहां लोकसभा, मथुरा-वृंदावन विधानसभा तथा नगर पालिका पर एक साथ कांग्रेस काबिज थी लेकिन अचानक सारा खेल तब बिगड़ता दिखाई दिया जब लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अपनी सीट गंवानी पड़ी और कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह भारी मतों से पराजित हुए।
कांग्रेस को मिली इस शिकस्‍त के पीछे कौन-कौन से महत्‍वपूर्ण कारण रहे और उनका पता कांग्रेस ने अपने स्‍तर से लगाया या नहीं, यह तो वही जाने अलबत्‍ता 'लीजेण्‍ड न्‍यूज' ने इस बावत कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह से बात की। कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह ने अपनी और कांग्रेस की हार के कारणों पर खुलकर टिप्‍पणी तो की ही, साथ ही इस बात के भी संकेत दिये कि विधानसभा चुनावों में पार्टी किस तरह यहां अपना वर्चस्‍व स्‍थापित कर सकती है।
कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह ने बतौर कांग्रेस प्रत्‍याशी अपनी हार के पीछे चार प्रमुख कारण बताए। इनमें सबसे पहले और अहम् कारण का खुलासा करते हुए उन्‍होंने किसी का नाम तो नहीं लिया लेकिन ये कहा कि पार्टी में ऊपर से नीचे तक सब जानते हैं कि मुझे हराने में किस-किस की भूमिका थी।
कुंवर साहब ने खुलासा किया कि पार्टी के भितरघातियों ने उन्‍हें हराने के लिए इतना पैसा खर्च किया जितने पैसे में लोकसभा के चार प्रत्‍याशी शान के साथ चुनाव लड़ सकते थे। उन्‍होंने बताया कि पार्टी के जिन लोगों पर मुझे चुनाव जितवाने की जिम्‍मेदारी थी, उन्‍होंने मुझे हराने के लिए 50-50 लाख रूपये तक खाये और रालोद प्रत्‍याशी के पक्ष में खुलकर काम किया। खुद को सोनिया जी व राहुल गांधी का निकटस्‍थ बताने वाले एक शख्‍स ने तो मुझे हराने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी। इस व्‍यक्‍ित ने मेरी आड़ में कांग्रेस से दुश्‍मनी साधी जबकि कांग्रेस ने उसे इतना दिया जिसकी कल्‍पना तक उसने नहीं की होगी।
कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह ने कहा कि बात चाहे आज नर्म के तहत मथुरा के विकास हेतु आ रहे पैसे तथा उसे लेकर लग रहे दुरूपयोग के आरोप की हो या कमीशनखोरी की, उसमें अगर किसी कांग्रेसी का नाम आ रहा है तो उसकी जांच होनी चाहिए क्‍योंकि 'नर्म' केन्‍द्र सरकार की योजना है और केन्‍द्र की सत्‍ता पर कांग्रेस काबिज है।
ऐसे में यदि किसी कांग्रेसी पर नर्म को लेकर भ्रष्‍टाचार के आरोप लग रहे हैं तो यह गंभीर मामला है। कांग्रेस को इसकी जांच कराकर दोषी व्‍यक्‍ित के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए तथा नर्म के पैसे का सदुपयोग हो, इसका ठोस इंतजाम करना चाहिए।
उन्‍होंने बताया कि नर्म के पैसों का बंदरबांट करने के लिए उन लोगों के मिल जाने की खबर मुझे भी लगी है जो कांग्रेसी होते हुए एक ओर जहां धुर विरोधी थे वहीं दूसरी ओर अब तक गुटबाजी के सूत्रधार रहे तथा जिन्‍होंने मुझे मोहरा बनाकर पार्टी का अहित किया।
कुंवर साहब ने कहा कि आज अगर जनता इनकी सम्‍पत्‍ति का ब्‍यौरा मांगने तथा ये पता करने की मांग कर रही है कि आखिर इनके पास इतनी सम्‍पत्‍ति आई कहां से तो क्‍या गलत कर रही है।
उन्‍होंने कहा कि जिनका राजनीति के अतिरिक्‍त कोई पेशा नहीं है, उनकी सम्‍पत्‍ति अगर अप्रत्‍याशित बढ़ रही है तो संदेह होना स्‍वाभाविक है।
कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह का कहना था कि ये बातें आगामी विधानसभा चुनावों में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायेंगी।
उन्‍होंने कहा कि मेरी हार का दूसरा कारण भाजपा तथा रालोद के बीच हुआ चुनावी पैक्‍ट रहा। रालोद प्रत्‍याशी जयंत चौधरी ने इसका पूरा लाभ उठाया। तीसरा कारण उनका युवा होना था और चौथा कारण बसपा प्रत्‍याशी श्‍यामसुंदर श्‍ार्मा के प्रति लोगों की स्‍वाभाविक नाराजगी रहा।
कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह ने कहा कि कुछ लोग निजी लाभ के लिए मथुरा में कांग्रेस को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं और यही कारण है कि ऐसे लोगों पर कमीशनखोरी, भ्रष्‍टाचार तथा विकास कार्यों में अनावश्‍यक हस्‍तक्षेप के आरोप लग रहे हैं।
आगामी विधानसभा चुनाव चूंकि नये परिसीमन के तहत लड़ा जायेगा इसलिए कांग्रेस को आम जनता के साथ-साथ पार्टी के निष्‍ठावान लोगों की भावनाओं पर भी ध्‍यान केन्‍द्रित करना होगा चाहे इसके लिए कुछ कठोर निर्णय क्‍यों न लेने पड़ें वरना अगले विधानसभा चुनाव रही-सही एकमात्र सीट भी हाथ से निकलवा सकते हैं।

100 साल में खत्म हो जाएगी मानव जाति

दुनिया को स्मॉलपॉक्स से मुक्त कराने में मदद करने वाले एक ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक ने एक सनसनीखेज अनुमान में अगले 100 वर्षों में धरती से मानव जाति का खात्मा हो जाने की बात कही है।
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनीवर्सिटी में माइक्रोबॉयोलोजी के प्रोफेसर फ्रैंक फेनर ने दावा किया है कि मानव जाति जनसंख्या विस्फोट और प्राकृतिक संसाधनों की बेलगाम खपत को बरदाश्त नहीं कर पाएगी।
फेनर ने कहा कि होमो सेपियंस सम्भवत: 100 वर्षों के अंदर लुप्त हो जाएँगे। अनेक अन्य जीवों का भी खात्मा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस स्थिति को बदला नहीं जा सकता। मेरे हिसाब से अब बहुत देर हो चुकी है। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि लोग कुछ करने की कोशिश में हैं बल्कि वे इसकी तरफ से अब भी मुँह मोड़े हुए हैं।
‘डेली मेल’ की खबर के मुताबिक फेनर ने कहा कि मानव जाति एंथ्रोपोसीन नाम के एक अनाधिकृत वैज्ञानिक युग में दाखिल हो चुकी है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन को भी मानव जाति के खात्मे की उल्टी गिनती शुरू होने का जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन तो महज शुरुआत है लेकिन हमें मौसम में व्यापक बदलाव पहले ही नजर आने लगे हैं। मानव जाति भी सम्भवत: उसी राह पर चल रही है जिस पर वे तमाम प्रजातियाँ चलीं जो आज विलुप्त हो चुकी हैं।

असहाय लोक, बेशर्म तंत्र


एक ओर बेलगाम महंगाई, उसके बावजूद पेट्रो पदार्थों की कीमतों में यह कहते हुए वृद्धि करना कि सरकार ऐसा करने के लिए मजबूर थी। फिर पेट्रोलियम राज्यमंत्री जतिन प्रसाद का यह बेशर्म बयान कि सरकार किसी भी हाल में बढ़ी हुई कीमतें वापस नहीं लेगी। यह बताना कि फैसला लंबे मंथन और सभी राजनीतिक एवं प्रशासनिक नफा-नुकसान के आधार पर लिया गया है लिहाजा रोलबैक नामुमकिन है।
दूसरी ओर इसी महंगाई की आड़ लेकर सांसदों द्वारा वेतन व भत्‍तों को बढ़ाने की मांग, वो भी इकठ्ठा पांच गुना। साथ ही 34 मुफ्त विमान यात्राओं की सिफारिश। इसके लिए इस आशय की बेहूदी दलील कि जिससे माननीय मतदाताओं के संपर्क में रह सकें।
क्‍या यही है लोकतंत्र जिसमें लोक यानि आम जनता असहाय और तंत्र पूरी तरह स्‍वतंत्र, पूरी तरह निरंकुश, पूरी तरह बेशर्म।
जब भी बात आती है जनप्रतिनिधियों के वेतन-भत्‍तों में इजाफा करने की तब सत्‍ता पक्ष व विपक्ष सब साथ खड़े नजर आते हैं। तब कहीं कोई मतभेद, कहीं कोई विवाद दूर-दूर तक नहीं होता। होती है तो सिर्फ सहमति।
यूं भी जनता द्वारा निर्वाचित माननीयों को अपने वेतन-भत्‍तों में बढ़ोत्‍तरी के लिए किसी से परमीशन तो लेनी नहीं होती, जो करना है उन्‍हीं को करना है इसलिए शीघ्र ही सांसदों का वेतन-भत्‍ता पांच गुना हो जायेगा।
गौरतलब है कि देश में कुल सांसदों की संख्‍या 795 है जिसमें से 545 लोकसभा के और शेष 250 राज्‍यसभा से हैं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि इस वेतन-वृद्धि से देश पर कितना आर्थिक बोझ बढ़ेगा। यहां यह बताना जरूरी है कि महंगाई का रोना रोकर वेतन-वृद्धि की मांग करने वाले तमाम राज्‍यसभा सदस्‍य अरबपति व करोड़पति हैं और अधिकांश लोकसभा सदस्‍य करोड़पति तो हैं ही। हाल ही में राज्यसभा से चुनकर आए विजय माल्या 615 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। वरिष्ठ पत्रकार और भाजपा नेता चंदन मित्रा ने कुल 9.41 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की है। राजस्थान से कुल पांच नेता राज्यसभा पहुंचे हैं। इसमें भाजपा से दो जबकि कांग्रेस के तीन हैं। यहां सबसे अमीर सांसद राम जेठमलानी हैं। उनके पास 29 करोड़ की संपत्ति है। भाजपा के ही विजेंद्र पाल सिंह के पास चार करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति है। कांग्रेस के आनंद शर्मा के पास 3.6 करोड और नरेंद्र बुडानिया के पास 2.66 करोड़ की संपत्ति है। मात्र 51 लाख की संपत्ति का खुद को मालिक बताने वाले अश्क अली सबसे ‘गरीब’ सांसद हैं। यह बात दीगर है कि फिलहाल चुनकर आए 54 में से कुल 19 सांसद ही पोस्ट ग्रेजुएट हैं। ग्रेजुएट की संख्या मात्र 12 है। इसी तरह ग्रेजुएट पेशेवर 11 और बारहवीं पास की संख्या 7 है।
यदि अपराधियों की बात की जाए तो हाल में चुनकर आए पंद्रह सांसदों के ऊपर किसी न किसी तरह का आपराधिक मामला दर्ज है। इसमें से छह पर हत्या, धोखाधड़ी जैसे गंभीर मामलों में केस चल रहे हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सभी दागी उम्मीदवार जीत गए हैं। बसपा के एसपी सिंह बघेल पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है तो विजय माल्या के ऊपर भी धोखाधड़ी के कई केस दर्ज है। लोकसभा की शोभा बढ़ा रहे 545 सांसदों में से ज्‍यादातर की स्‍थति यही है अर्थात उनका भी आर्थिक व सामाजिक स्‍तर अपने इन सहोदरों से बहुत अलग नहीं है लेकिन चुन कर आये हैं तो सरकारी सुख-सुविधाएं सब को चाहिए। अरबपतियों को भी और करोड़पतियों को भी।
हां, अपवाद स्‍वरूप कुछ लोगों ने सांसदों द्वारा वेतन-भत्‍तों को इकठ्ठा पांच गुना किये जाने की मांग पर दबे स्‍वर में टीका-टिप्‍पणी की है। जैसे सपा नेता मोहन सिंह। मोहन सिंह ने कहा है कि यह संसद सदस्यों के वेतन में वृद्धि का सीधा मामला है, लेकिन भारत में जमीनी हालात को देखते हुए फैसला किया जाना चाहिए। मार्क्‍सवादी नेता सीताराम येचुरी कह चुके हैं कि उनकी पार्टी सांसदों द्वारा अपने वेतन के बारे में फैसला करने के कदम का विरोध करेगी, क्योंकि यह गलत है।
पिछली लोकसभा में तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने वेतन वृद्धि के मामले पर विचार के लिए वेतन आयोग जैसी संस्थागत प्रक्रिया के पक्ष में राय दी थी। उन्होंने तो प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को एक पत्र भी लिखा था कि उन्हें लगता है कि अपने वेतन के बारे में सांसदों का खुद ही फैसला करना उचित नहीं है।
उधर वेतन-भत्‍ता बढ़ाने के पक्षधर सांसदों का तर्क है कि अमेरिका में एक सीनेटर अपने स्टाफ में 18 कर्मचारी रख सकता है, जबकि भारत में एक सांसद का सचिवीय भत्ता (सेक्रेटेरियल अलाउंस) केवल 20000 (बीस हजार) रुपए है। इस राशि में कंप्यूटर जानने वाले स्टाफ को रख पाना संभव नहीं है।
इन सांसदों से कोई पूछे कि अमेरिका में प्रतिव्‍यक्‍ित की सालाना आय क्‍या है और वहां की सरकार आम आदमी के लिए कितना-कुछ करती है तो शायद वह इसका जवाब ठीक-ठीक न दे सकें लेकिन
वहां के सीनेटर की आमदनी का इन्‍हें पूरा पता है।
जिस देश के नेता स्‍वतंत्रता के 62 सालों बाद भी जनता की मूलभूत जरूरतें तक पूरी न कर पाये हों, कानून का राज स्‍थापित न करा पाये हों, आतंकवाद पर लगाम लगाने में पूर्णत: विफल रहे हों, नक्‍सलवाद जैसी बीमारी को जिन्‍होंने समय रहते उपचार न करके लाइलाज बना डाला हो। जिनकी नीतियों ने छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्‍कों को आंखें तरेरने की हिम्‍मत दी हो, पाकिस्‍तान को अपनी अस्‍मत पर बार-बार हमला करने का दुस्‍साहस दिया हो, उन्‍हें क्‍या यह कहने का अधिकार है कि अमेरिका के सीनेटर्स को जो सुविधाएं मिलती हैं, वह उन्‍हें मिलनी चाहिए।
अपने वेतन-भत्‍ते पांच गुना बढ़ाने की मांग करने वाले सांसदों के पास इस प्रश्‍न का कोई जवाब है क्‍या कि कमरतोड़ महंगाई के चलते पहले से ही बमुश्‍िकल परिवार का पेट पालने वाले लोग अब पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन व रसोई गैस के दामों में की गई बेहिसाब बढ़ोत्‍तरी के बाद अपने खर्चे कैसे व कहां से पूरे करें। लूट करें या डकैती डालें। उनके लिए भी क्‍या ऐसा कोई खजाना है जहां से वो अपनी जरूरतों को पूरा भर कर सकें। जिन्‍हें निर्वाचित करके अपने भविष्‍य की जिम्‍मेदारी सौंपते हैं, उनका जवाब होता है कि न महंगाई कम कर सकते हैं और न पेट्रो उत्‍पादों के दाम रोलबैक करना संभव है। संभव है तो केवल अपने वेतन-भत्‍ते बढ़वाना जो वह बखूबी कर रहे हैं। जनता का क्‍या है। वह तब भी असहाय थी जब देश गुलाम था और आज भी असहाय है जब पिछले 62 सालों से लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। सच तो यह है कि इस देश में अगर कुछ है तो वह है हिप्‍पोक्रेसी। न डेमोक्रेसी, न ब्‍यूरोक्रेसी। सिर्फ और सिर्फ
हिप्‍पोक्रेसी

नर्म का कड़वा सच !

1833 करोड़ की योजना, करीब 150 करोड़ हजम और अब शेष 1683 करोड को डकारने की तैयारी। यह कड़वा सच है केन्‍द्र सरकार की उस महत्‍वकांक्षी योजना का जिसे जे. नर्म कहते हैं। यानि जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्‍यूअल मिशन। मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक प्रदीप माथुर ने मथुरा को इस योजना में शामिल किये जाने के बाद से लगातार दावा किया कि इस धार्मिक शहर का जे. नर्म में शामिल होना केवल और केवल उन्‍हीं के प्रयासों का नतीजा है। योजना में मथुरा को शामिल कराने का पूरा श्रेय लेने वाले विधायक प्रदीप माथुर ने तब कहा था कि उन्‍हें इसके लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ा है और इसके अमल में आने के साथ मथुरा का स्‍वरूप ऐसा हो जायेगा जिसकी जनता को कल्‍पना तक नहीं होगी। उन्‍होंने अपने दावे को मजबूत करने और श्रेय को परवान चढ़ाने के लिए प्रेस वार्ताएं कीं। अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाये, सोनिया जी से इस बावत खुद को मिली तथाकथित शाबाशी का भरपूर प्रदर्शन किया और अपनी ही पार्टी के तत्‍कालीन सांसद कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह तथा उनके गुट से खुला टकराव मोल लिया। यहां तक कि पार्टी के सार्वजनिक कार्यक्रमों में सांसद व उनके छोटे भाई कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह के साथ धक्‍का-मुक्‍की करने से पीछे नहीं हटे।
जनता ने भी मान लिया कि जे. नर्म में मथुरा को विधायक प्रदीप माथुर ने ही शामिल कराया है। नतीजतन प्रदीप माथुर को जनता ने पिछले विधानसभा चुनावों में एक बार फिर निर्वाचित करा दिया। उधर कांग्रेसी सांसद कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह इस बार चुनाव हार गये। रही-सही कसर तब पूरी हो गई जब कांग्रेस के ही नगर पालिका अध्‍यक्ष पर अनियमितताओं के आरोप लगे और इस कारण हाईकोर्ट ने उनके वित्‍तीय अधिकार सीज कर दिये। इस तरह जे. नर्म पर दावे के अनुरूप प्रदीप माथुर का पूरा आधिपत्‍य हो गया।
आज जनता अपने आप को पूरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रही है। लोगों को अहसास होने लगा है कि विधायक प्रदीप माथुर का यह कथन कितना उपयुक्‍त था कि जे. नर्म का क्रियान्‍वयन होने के बाद मथुरा का स्‍वरूप उनकी कल्‍पना से भी परे होगा।
योजना के तहत मथुरा शहर के विकास हेतु मुकर्रर कुल 1833 करोड़ रूपयों में से करीब 150 करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा है। अब तक सबसे बड़ी मद शहर का ड्रेनेज सिस्‍टम बनाने पर खर्च की गई है जिसके अंतर्गत नाला निर्माण कार्य चल रहा है। यह कार्य ''एल एण्‍ड टी'' नामक कंपनी कर रही है। कंपनी द्वारा फिलहाल कुल कार्य का एक चौथाई हिस्‍सा भी पूरा नहीं किया गया है जबकि पूरे शहर को बेतरतीब तरीके से खोद डाला गया है। नाला निर्माण के लिए अति आवश्‍यक कार्य सड़क से अतिक्रमण को हटाना जरूरी नहीं समझा गया और जहां जगह मिली, वहीं खुदाई करा दी गई। कई जगह तो अतिक्रमण हटाने से बचने के लिए पक्‍की सड़क खोदकर डाल दी गई है। जिस अंदाज में और जिस गति से नाला निर्माण का कार्य किया जा रहा है, उसे देखकर लगता है कि प्रथम तो कार्यदायी संस्‍था का उद्देश्‍य कार्य पूरा करना है ही नहीं, दूसरे अगर जैसे-तैसे काम पूरा किया जाता है तो उसके होने या ना होने में कोई फर्क नहीं होगा। पानी की निकासी और उसके बहाव का कोई इंतजाम नहीं किया जा रहा। ऐसा लगता है जैसे किसी दबाव में कार्य करने की महज औपचारिकता पूरी की जा रही है। ये बात अलग है कि कागजों तथा फाइलों पर सब-कुछ दुरूस्‍त चल रहा है जो नर्म की भारी-भरकम धनराशि को हड़पने के लिए जरूरी है।
इसी प्रकार शहर की साफ-सफाई के लिए करोड़ों रूपये खर्च करके ठेल-ढकेल से लेकर डम्‍फर तथा ट्रैक्‍टर-ट्रॉली से लेकर जेसीबी मशीनें तक खरीद ली गईं। उनकी खरीद में जिन्‍हें कमीशन खाना था, उन्‍होंने कमीशन भी खा लिया लेकिन उनका उपयोग अभी तक शुरू नहीं हुआ। कारण जानकर आश्‍चर्य होगा कि सफाई के लिए जिम्‍मेदार नगर पालिका के पास न तो ठेल-ढकेल चलाने वाले कर्मचारी हैं और न जेसीबी, डम्‍फर व ट्रैक्‍टर-ट्रॉली चलाने वाले ड्राइवर। परिणाम स्‍वरूप ये सारे कीमती उपकरण नगर पालिका के गोदाम में पड़े जंग खा रहे हैं।
यही हाल उन अधिकांश बसों का है जो इस योजना के तहत शहर की परिवहन व्‍यवस्‍था दुरूस्‍त करने के लिए भेजी गई हैं। छ: महीने से ज्‍यादा का समय बीत गया लेकिन अब तक इन बसों का रूट तय नहीं हो पाया है क्‍योंकि इसे लेकर भी मतभेद है। शहर की भौगोलिक स्‍िथति ऐसी है कि अरबन और रूरल एरिया तय कर पाना मुश्‍िकल हो है। रूरल में ये बसें चलाई नहीं जा सकतीं और शहर का आलम यह है कि वह शुरू होते ही खत्‍म हो जाता है लिहाजा बसें चल कम रही हैं, वर्कशॉप की शोभा ज्‍यादा बढ़ा रही हैं।
शहर के बद से बदतर होते हालातों को देखकर कोई भी अंदाज लगा सकता है कि किस तरह यहां केन्‍द्र सरकार की जे. नर्म जैसी महत्‍वांकाक्षी योजना को नेता, अधिकारी व ठेकेदार मिलकर पलीता लगा रहे हैं। टूटी पड़ी सड़कें, जगह-जगह होता जलभ्‍ाराव, रेलवे पुलों के नीचे बने ताल-तलैया, हर चार कदम पर लगे गंदगी के ढेर और शहरभर में बने डलावघर, यह समझने के लिए पर्याप्‍त हैं कि जे. नर्म से अब तक प्राप्‍त 150 करोड़ रूपये का बंदरबांट किया जा चुका है। जो काम होता दिख रहा है, वह कागजी घोड़े दौड़ाने तथा शेष 1683 करोड़ की मोटी रकम डकारने की भूमिका का हिस्‍सा है।
इस बात की पुष्‍टि क्षेत्रीय विधायक प्रदीप माथुर द्वारा हाल ही में दिये गये एक बयान से बखूबी होती है। प्रदीप माथुर के अनुसार जे. नर्म की शेष राशि लाने के लिए वो सोनिया गांधी, प्रंणव मुखर्जी, जयपाल रेड्डी व मोंटेक सिंह अहलूवालिया से वार्ता कर चुके हैं। प्रदीप माथुर ने बताया कि जेनर्म में चयनित शहर, जिनका विकास किन्‍हीं कारणोंवश अधूरा रह गया है, उनके लिए 'जेनर्म-2' को लाया जा रहा है और इसमें मथुरा के लिए बकाया केंद्रीय बजट करीब 1683 करोड़ को अवमुक्‍त कराने का प्राविधान है। विधायक महोदय ने यह जानकारी भी दी कि जेनर्म के यूपी कोटे में एक भी पैसा अवशेष नहीं है। उन्‍होंने जे. नर्म के क्रियान्‍वयन में हुई देरी तथा पर्याप्‍त फंड न मिल पाने का ठीकरा अपनी ही पार्टी के कुछ लोगों के सिर फोड़ा लेकिन किसी का नाम लेने से परहेज किया।
बताया जाता है कि विधायक जी की यह नीति किसी सोची-समझी योजना का हिस्‍सा है ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
जो भी हो लेकिन सबकी नजर अब जे. नर्म की उस भारी-भरकम बकाया धनराशि पर है जिससे शहर का विकास भले ही न हो पर बाकी सब की कई पीढ़ियों का बंदोबस्‍त जरूर हो जायेगा।
आश्‍चर्य की बात यह है कि हजारों करोड़ रूपयों के घपले पर कोई कुछ बोलने वाला नहीं है।
दरअसल इस शहर की फितरत ही कुछ ऐसी है। यहां तमाशबीनों का जमघट रहता है। जागरूकता का अभाव है और अधिकांश लोग निजी स्‍वार्थों की पूर्ति में लिप्‍त रहते हैं। यहां के लोगों का जीवन दर्शन है-''कोउ नृप होय हमें का हानी'' या ''जाही विधि राखे राम, ताही विधि रहिये'' ।
यही कारण है कि वह न तो वर्षों से रेलवे पुलों के नीचे हो रहे जलभराव को लेकर उद्वेलित होते हैं और न बिजली, पानी, सड़क, अपराध तथा डग्‍गेमारी को लेकर आवाज उठाते हैं। भ्रष्‍टाचार तो कोई समस्‍या रह ही नहीं गई इसलिए चाहे कोई अधिकारी अपनी तिजोरी भरता रहे या कोई नेता अपना बैंक बैलेंस बढ़ाता जाए, यहां किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
ऐसे में जे. नर्म हो या मुख्‍यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्‍ट, सब कुछ खास लोगों की अतिरक्‍त मोटी कमाई का जरिया बन जाएं तो आश्‍चर्य कैसा। आश्‍चर्य तो तब होगा जब इन योजनाओं से मिलने वाली कुल धनराशि का एक चौथाई हिस्‍सा भी मथुरा-वृंदावन के विकास पर खर्च हो जायेगा।

मथुरा बना विधानसभा चुनाव 2012 की राजनीतिक धुरी

आगामी विधानसभा चुनावों के लिए उत्‍तर प्रदेश को टारगेट बनाकर एक लम्‍बे समय से शह और मात का खेल खेलती आ रही कांग्रेस अब आखिरी दांव खेलने की पूरी तैयारी कर चुकी है। इस खेल के लिए कांग्रेस द्वारा कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली को मैदान बनाया जा रहा है और इसमें उसका गुपचुप साथ दे रहे हैं राष्‍ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह।
दरअसल राष्‍ट्रीय लोकदल का कांग्रेस में विलय किये जाने की चर्चाएं पिछले कई महीनों से राजनीतिक जगत में फैली हुई हैं, हालांकि रालोद मुखिया इस बावत चुप्‍पी साधे बैठे हैं। रालोद के युवराज और मथुरा के सांसद जयंत चौधरी भी ऐसे किसी प्रश्‍न का जवाब देने को उपलब्‍ध नहीं होते।
बताया जाता है कि रालोद और कांग्रेस इस नये राजनीतिक खेल की बिसात कुछ इस तरह बिछाने में लगे हैं जिससे बहुजन समाज पार्टी चारों खाने चित्‍त हो जाए। कांग्रेस इसके लिए जहां चौधरी अजीत सिंह को अपने मोहरे की तरह इस्‍तेमाल करने में लगी है वहीं राष्‍ट्रीय लोकदल के मुखिया कांग्रेस के रथ पर सवार होकर अपनी चिर-परिचित महत्‍वाकांक्षा को पूरा करना चाहते हैं। इस बार उनकी महत्‍वाकांक्षा में उनके एकमात्र पुत्र व मथुरा के सांसद जयंत चौधरी भी शामिल हैं। हों भी क्‍यों नहीं, कांग्रेस भी तो रालोद के एक तीर से कई निशाने साधना चाह रही है। वह बसपा को उत्‍तर प्रदेश की सत्‍ता से बेदखल करने की कोशिश के अलावा भाजपा को हाशिये पर रखना चाहती है। रही बात सपा की तो वह आगे चलकर यूपी की सत्‍ता से बसपा को दूर रखने में कांग्रेस की ही मददगार साबित होगी।
कांग्रेस की इस रणनीति के तहत रालोद मुखिया चौधरी अजीत सिंह ने बसपा के कई दिग्‍गज नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। रणनीति के तहत पूरी योजना को तब तक गुप्‍त रखना है जब तक मकसद पूरा न हो जाए। इसीलिए चौधरी अजीत सिंह व उनके पुत्र जयंत चौधरी कुछ नहीं बोल रहे। बस जो काम सौंपा है, उसे मुकाम तक पहुंचाने में लगे हैं।
राष्‍ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह के अत्‍यंत निकटस्‍थ और एक धार्मिक चैनल के मालिक मुम्‍बई बेस्‍ड उद्योगपति से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार कांग्रेस की मंशा को पूरा करने की शुरूआत चौधरी अजीत सिंह ने कृष्‍ण की नगरी से कर दी है। जाट बाहुल्‍य क्षेत्र मथुरा के कई प्रभावशाली बसपा नेताओं के साथ चौधरी अजीत सिंह की गोपनीय बैठकें हो चुकी हैं। ये नेता बसपा में अपने दिखावटी प्रभाव से आजिज आ चुके हैं। इन्‍हें समझ में नहीं आ रहा कि पार्टी आलाकमान के तल्‍ख रवैये से कैसे निपटा जाए। यही कारण है कि वह चौधरी अजीत सिंह से पुराने सारे गिले-शिकवे भुलाकर उनके पदचिन्‍हों का अनुसरण करने का मन बनाने लगे हैं।
सत्‍ताधारी दल के इन प्रभावशाली नेताओं का मानना है कि आगामी विधानसभा चुनावों तक उनकी पार्टी की नीतियां आमजन को उससे दूर ले जायेंगी और ऐसी स्‍थिति में बसपा की टिकट पर चुनाव जीतना मुश्‍किल होगा। ये बात अलग है कि सत्‍ता के मद में चूर ये नेता अपनी वर्तमान स्‍थिति के लिए खुद अधिक जिम्‍मेदार हैं।
इधर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने बहुजन समाज में भी खासी पैठ बना ली है। सर्वविदित है कि बहुजन समाज पर कुछ वर्षों पहले तक कांग्रेस का आधिपत्‍य हुआ करता था। ये भी कह सकते हैं जिस समाज के बल पर बसपा सुप्रीमो मायावती आज सत्‍ता सुख भोग रही हैं, वह मूल रूप से कांग्रेस का हिमायती रहा है इसलिए कांग्रेस को उसे अपने साथ जोड़ने में ज्‍यादा दिक्‍कतें नहीं आयेंगी बशर्ते वह ठान ले। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में तो दलित वर्ग को काफी हद तक आकर्षित कर भी लिया और इस कारण मायावती तिलमिला उठी थीं लेकिन जहां तक सवाल पश्‍िचमी उत्‍तर प्रदेश का है तो कांग्रेस के पास यहां ऐसा कोई तिलिस्‍मी नेता नहीं है जो पार्टी की नैया पार लगवा सके जबकि इस बैल्‍ट में पकड़ के बगैर न तो केन्‍द्र की राह निष्‍कंटक है और न प्रदेश की। कांग्रेस चूंकि इस सच्‍चाई से भली-भांति वाकिफ है इसलिए उसने रालोद नेता चौधरी अजीत सिंह से सशर्त सौदेबाजी की है।
गत विधानसभा चुनावों में इसीलिए भाजपा ने अजीत सिंह से पैक्‍ट किया था। भाजपा और रालोद दोनों को भरोसा था कि केन्‍द्र में भाजपा सरकार बना लेगी पर नतीजों ने सारी उम्‍मीद तोड़ दीं। चौधरी अजीत सिंह तो तभी कांग्रेस के पीछे हो लिये थे। हालांकि उस समय कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देने वालों की लाइन लगी हुई थी इसलिए चौधरी अजीत सिंह की दाल नहीं गली वरना उन्‍होंने तो चुनाव के तुरंत बाद भाजपा को ठेंगा दिखाने की तैयारी कर ली थी। मौका व दस्‍तूर देखते हुए अब कांग्रेस को पश्‍िचमी उत्‍तर प्रदेश में चौधरी अजीत सिंह पर दांव खेलना मुनासिब लग रहा है इसलिए उसने उन्‍हें आगे किया है। बेशक इसके लिए उसे केन्‍द्र में देर-सबेर चौधरी अजीत सिंह व जयंत चौधरी को पुरस्‍कृत करना पड़ेगा लेकिन कांग्रेस कई मामलों में फंसी हुई है, केन्‍द्र में उसके सहयोगी उसे जब-तब आंखें दिखाते रहते हैं अत: उसके लिए सौदा बुरा नहीं है।
इधर पश्‍िचमी उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में मथुरा की अहमियत का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि राजनाथ सिंह के नेतृत्‍व वाली भाजपा की सरकार में किसी एक जिले से सर्वाधिक पांच मंत्री मथुरा से ही थे इसलिए मथुरा पर कांग्रेस का फोकस यूं ही नहीं है।
अब तक मांट विधानसभा क्षेत्र में अजेय रहे प्रदेश के पूर्व कबीना मंत्री श्‍यामसुंदर शर्मा हों या वर्तमान बसपा सरकार के कबीना मंत्री चौधरी लक्ष्‍मीनारायण, रालोद नेता व प्रदेश के पूर्व मंत्री ठाकुर तेजपाल सिंह हों या भारतीय जनता पार्टी के नेता व पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग, सब की अपनी-अपनी अलग हैसियत है और अलग-अलग महत्‍व। ऐसे में कांग्रेस का चौधरी अजीत सिंह को मोहरा बनाकर अपनी चुनावी बिसात बिछाना जो संकेत दे रहा है, वह महत्‍वपूर्ण है।
कांग्रेस के लिए यह इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि पश्‍िचमी उत्‍तर प्रदेश में उसके पास पिछले काफी समय से ऐसे उम्‍मीदवार ही नहीं रहे जिनमें जीतने का माद्दा हो। अब वह समय रहते कद्दावर उम्‍मीदवारों का चयन कर लेना चाहती है। राहुल गांधी द्वारा अपने निजी दूतों से हाल ही में आगरा मण्‍डल का सर्वे कराया जाना इसी अभियान की एक कड़ी है जिसमें राजबब्‍बर भी अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
कांग्रेस या यूं कहें कि राहुल गांधी के ये प्रयास कितना रंग लायेंगे तथा अजीत सिंह कांग्रेस की इस योजना को साकार करने में कितने सफल होंगे, यह तो आगे पता लगेगा लेकिन एक बात तय है कि कांग्रेस ने बसपा तथा भाजपा में सेंध लगाने के मुकम्‍मल इंतजाम किये हैं और राजनीति की इस बदलती धुरी का केन्‍द्र मथुरा को रखा गया है क्‍योंकि मथुरा पश्‍िचमी उत्‍तर प्रदेश के उन जिलों में शुमार है जहां रालोद मुखिया चौधरी अजीत सिंह का खासा वर्चस्‍व कायम है।
कांग्रेस को अगर अपनी इस रणनीति में सफलता मिलती है तो बसपा व भाजपा के कई दिग्‍गज आगामी विधानसभा चुनावों में नि:संदेह कांग्रेस की ओर खड़े नजर आयेंगे और उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में उनकी निर्णायक भूमिका होगी।

Thursday, June 24, 2010

Jai Shri Parsuram




"प्रभु परशुराम की महिमा"

भारत वर्ष की धरती पर, प्रभु ने षष्ठम् अवतार लिया |
भक्तों की रक्षा करने को, प्रभु ने फरसा थाम लिया ||

त्रेता युग में तुम थे जन्मे, भृगु के पौत्र कहाये थे |
जमदग्नि-रेणुका के थे जाये, ऋषि-कुल में तुम आये थे ||

प्रसेनजित के पुण्य थे पाए, शिव जी से था फरसा पाया,
कामधेनु का दुग्ध पिया था, माँ के आँचल की थी छाया |

कामधेनु का दर्शन करके, हैहय-राजा था ललचाया |
ऋषि के ना करने पर उसने, कामधेनु का हरण कराया ||

पुरुषोत्तम लौटे जब आश्रम, सहस्त्रार्जुन को था ललकारा |
सहस्त्र भुजाएं करके खंडित, सैन्य सहित उसको संहारा ||

अनुपस्थिति में परशुराम की, अर्जुन-पुत्र वहाँ था आया |
और अकेले ऋषि को पाकर, जमदग्नि का वध करवाया ||

प्रतिशोध में पिता के आकार, हैहय क्षत्रिय सब संहारे |
पापमुक्त कर दिया धरा को, सहस्त्रबाहु गया प्रभु के द्वारे ||

सर्वोपरि है पिता की आज्ञा, युद्ध-नीति विधि ज्ञाता हैं |
प्रभू-भक्त ब्राह्मण समाज के, ये तो भाग्य विधाता हैं ||

शिव-धनुष टंकार सूनी जब, तुरतहिं रक्षा को थे धाये |
सिया-स्वयंवर में थे पहुंचें, सप्तावतार के दर्शन पाए ||

सीता को आशीष दिया ये, सुख-सौभाग्य सदा ही पाओ |
श्रीराम संग सदा बिराजो, पतिव्रता तुम सदा कहाओ ||

शिष्य भीष्म और द्रोण तुम्हारे, कर्ण को था सब ज्ञान दिया |
अपने जीवन काल में तुमने, प्रभु भक्तों को मान दिया ||

रक्षा में ब्राह्मण की तुमने, सारा जीवन लगा दिया |
अब भी आवश्यकता है तुम्हारी, सबने तुमको याद किया ||

कल्कि पुराण कहे ये प्रभुजी, दशम अवतार में आयेंगे |
तुम्हीं गुरु होगे उन प्रभु के, तुम्हीं से शिक्षा पाएंगे ||

भगवन परशुराम की महिमा, जगत में जो भी गायेगा |
सरस्वती की कृपा रहेगी, सदा मान वो पायेगा |